मैं मोना सिंह। मैं एक अच्छे घर से बिलॉन्ग करती हूँ। मैं 6 बहनें और एक भाई हूँ। मेरे पापा गवर्नमेंट जॉब में थे, तो घर में कम बजट था और परिवार बड़ा था। 6 बहनें और एक भाई। मैं दूसरी सबसे छोटी हूँ। मेरे पापा ने ज्यादा किसी को नहीं पढ़ाया। सभी को बस 10वीं क्लास तक ही पढ़ाया। मतलब इतना पढ़ाया कि हम लोग अनपढ़ न रहें। एक चीज़ अच्छी थी कि पढ़ाई इंग्लिश मीडियम से हुई। पर मैं सिर्फ 8वीं क्लास तक ही पढ़ पाई क्योंकि मेरी शादी कर दी गई। घर में कोई समस्या थी या फिर एक लड़का मिल गया फ्री में, और मेरी शादी कर दी गई। साल 2003 में मेरी शादी हुई। शादी इतनी गंदी जगह हुई कि मैं उसे शब्दों में बयां नहीं कर सकती। अगर किसी को जानना हो, तो मुझे बोलकर पूछना पड़ेगा क्योंकि मैं लिख नहीं सकती। शादी के बाद मेरे ससुराल से एक नियम आया मेरे मायके में, कि शादी के एक साल तक बहू की विदाई नहीं कर सकते। लेकिन मेरा भाई आया और बोला, "ये कैसा नियम है? हम लोग ये नहीं होने देंगे।" मेरा भाई दो-तीन बार मेरी विदाई कराने आया। लेकिन मेरे ससुराल वालों ने एक प्लान बना लिया। हमारे गाँव में कोई भी काम पंडित से पूछकर किया जाता है। शुरू में, शादी के बाद यही नियम बताया गया। मेरे ससुर ने पंडित जी को पैसे देकर प्लान बना लिया था कि वो बाद में मेरे भाई को बहाना बना देंगे ताकि मैं एक साल तक मायके न जा पाऊँ। फिर वही हुआ। मैं एक साल तक मायके नहीं गई। इस एक साल में मेरी बेटी हुई, जिसका नाम माही रखा। शादी के तीन साल बाद मैं मायके गई। फिर मेरे देवर की शादी हुई। मेरी देवरानी 15 दिन बाद ही मायके चली गई। तब मैंने गाँववालों से पूछा कि ये क्या है? मेरे समय तो ऐसा नहीं था। जबकि ये नियम सिर्फ 2 साल पहले ही बताया गया था। आज ऐसा कैसे? मैंने गाँववालों से इसलिए पूछा ताकि सच्चाई पता चल सके। तब पता चला कि ये सब पंडित के बहाने थे। जब मेरी विदाई 3 साल बाद हुई, तो मैंने सारा दुख-दर्द अपने परिवार में माँ को बताया। मेरी माँ बहुत स्ट्रॉन्ग हैं। मेरी एक बहन हैं, जो 3 नंबर की हैं। वो सबका दर्द समझ जाती हैं और एक भाई की तरह सपोर्ट करती हैं। उन्होंने ये सारी बातें सुनकर बहुत गुस्सा किया और वहाँ से सब छोड़ने की बात कर दी। बोलीं, "ऐसे परिवार में नहीं चाहिए मेरी बहन को। ऐसे तो अच्छा है कि यही रह लेगी पूरी जिंदगी। वो तो नरक है। इतना जुर्म हुआ है, इस पर आगे पता नहीं क्या होगा।" मेरे मायके और ससुराल में बहुत ज्यादा विवाद हुआ। अब मैं कुछ नहीं समझ पा रही थी कि मैं कहाँ जाऊँ, क्या करूँ, क्योंकि मुझमें कोई समझदारी नहीं थी। मेरे मन में बस एक ही बात थी कि कोई बात नहीं। मेरे पति बाहर नौकरी कर लेंगे तो सब ठीक हो जाएगा। फिर मैंने अपने भाई से बात की, "भाई, आप इन्हें जॉब दिलवा दो। ये जॉब कर लेंगे तो सब ठीक हो जाएगा। शायद काम करेंगे तो मैं भी बाहर चली जाऊँगी। तो बस सब ठीक हो जाएगा।" मेरा भाई अच्छा जॉब करता था। मेरी शादी के बाद उसकी नौकरी अच्छी थी। वो मेरे पति को अपने अंडर काम पर लगा सकता था। शादी के 5 साल बाद मेरे पति को जॉब लगवा दी। पर मुझे लगा कि मेरी शादी तो एक नौकरी वाले लड़के से ही हुई है। पर ये सब झूठ निकला। अब नौकरी तो लग गई, पर मेरे पति नौकरी ही न कर पाए। हर 15 दिन में घर भागकर आ जाया करते। अब मेरा परिवार बहुत परेशान हुआ कि अब क्या करें। फिर भी मेरा भाई हार नहीं माना। उनका अटेंडेंस बनाता गया। करीब 1 साल मेरा भाई इसी तरह से नौकरी को पकड़े रहा। पर फिर मेरे भाई ने कहा, "मोना, ये नौकरी नहीं कर पाएंगे। एक काम करो। तुम यहीं रहो। हो सकता है ये काम कर लें और बार-बार घर न आएँ।" तो मेरा भाई मेरे लिए फ्लैट लाया और मुझे बुला लिया। तब मेरी दो बेटियाँ हो चुकी थीं। मैं एक बेटी को नानी के पास छोड़ आई और एक को लेकर फ्लैट में आ गई। फिर जैसे ही 2 महीने हुए, वो नौकरी पर नहीं जाने लगे। मेरी किस्मत क्या थी, पता नहीं। पर मेरे भाई का प्रमोशन हो गया और वो चांगन से कहीं और चला गया। अब मैं अकेली थी और मेरे पति की नौकरी खतरे में। फिर भी मेरे भाई ने वहाँ भी बुलाया। अपने दोस्त से बात कर इंटरव्यू दिलवाया। उसके साथ जो मेरे भाई का दोस्त था, उसका भी कराया और मेरे पति का भी कराया। उसका तो हो गया पर मेरे पति का नहीं हुआ। हो जाता क्योंकि सब कुछ बताया हुआ था। पर एक जगह फँस गए कि सैलरी कम बता दी और…. "उस पर पेपर जो था, उस पर ज़्यादा था, तो उसमें ही वो पकड़े गए। उनमें इतना भी नहीं था कि देख लें कि कितनी सैलरी बोलनी है, तो जॉब नहीं लगी और वापस आ गए। अब आने के बाद मेरा भाई क्या कर सकता था? उसने समय दिया। फिर बाद में बुलाया, पर जिसको काम ही नहीं करना, उससे कोई काम नहीं करा सकता। ये तो सच है। ऐसे-ऐसे दिन बीत गए और मैं बहुत परेशान थी, क्योंकि मैं खुश ही नहीं थी। तो क्या करूं, क्या नहीं करूं, समझ से बाहर था। कोई रास्ता नहीं, सारे बंद हो गए। जीने का कोई मतलब भी न दिखाई दे रहा था। क्या करूं, क्या नहीं करूं, कुछ समझ नहीं आ रहा था। फिर एक आदमी से मेरी मुलाकात हुई। उससे मैंने एक टीवी खरीदी थी अपनी बेटी के लिए। तो मैंने सोचा, अब क्या करूं? अब तो उसी घर में जाना होगा और जैसे रखें, रहना होगा। क्या ही करूं? मायके में तो इतना नहीं रह सकती। माँ-पापा को परेशान नहीं कर सकती। माँ-बाप तो माँ-बाप होते हैं, वो तो मुझे रख लेते, पर ये मेरा फैसला था कि मैं मायके नहीं रह सकती। और मैंने अपने ससुराल जाकर रहने का सोच लिया। पर भगवान जी को कुछ और ही पसंद था। जब टीवी देने गए अंकल को, तो उन अंकल ने ही मुझे सारी बात समझाई। टीवी देने के दौरान ही उन्होंने मुझे समझाया और जॉब करने की सलाह दी। और मैंने जॉब करना शुरू कर दिया। तब मेरी छोटी बेटी बस 1 साल की थी। अब सवाल आया कि जॉब कैसे करूं, बच्चा छोटा है। तो मैंने अपनी बेटी को कुछ समय के लिए अपने मायके में छोड़ दिया और जॉब शुरू की। जब जॉब शुरू की, तो मेरे पास कोई डॉक्यूमेंट्स नहीं थे। अब क्या करूं? तो फिर उन अंकल ने एक और रास्ता बताया कि तुम किसी भी बहन के डॉक्यूमेंट्स मंगा लो और जॉब शुरू करो।
Thursday, January 2, 2025
मोना की कहानी (अध्याय 1)
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