Saturday, January 11, 2025

मोना की कहानी (अध्याय 8)

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और अब मैं आशीष के साथ हूँ। जो भी दुख-सुख होता है, उसे बता देती हूँ। अभी मेरी बेटी 12वीं में आ गई है, उसी की बहुत टेंशन रहती है मुझे। बस यही चाहती हूँ कि वह जल्दी कुछ कर ले और जल्दी कोई अच्छा कोर्स चुन ले, जो कम समय का हो। पर देखो, वह NEET करने की बात करती है। मुझे डर लगता है कि कैसे होगा, पर पता नहीं, क्योंकि मुझे उतना नॉलेज नहीं है। भगवान से यही प्रार्थना करती हूँ कि वह कोई अच्छा रास्ता चुने और जल्दी पढ़ाई पूरी करने वाला रास्ता निकाले। बस मैं अपनी बेटी को तो नहीं बता सकती कि पैसे की दिक्कत है, पर भगवान को तो बता ही सकती हूँ। इसीलिए बेटी को ना बताकर भगवान को ही बता देती हूँ और मुझे भरोसा है कि भगवान कुछ न कुछ करेंगे। अभी मेरी लाइफ़ में सब ठीक चल रहा है—जॉब भी ठीक है और बजट भी ठीक है। मैं और मेरे पति गाँव में रहते हैं। मैंने दो बीघा ज़मीन ले ली है हिस्से में, उसी में खेती करवाती हूँ। उससे थोड़ा पैसा आ जाता है। खेती करते-करते 7 साल हो गए, सब ठीक था। पर अब फिर से घर में टेंशन चलने लगा, क्योंकि मेरे पति गाँव में ही रहने लगे हैं। तो मेरी सास जो खाना बनाती है, वही मेरे पति भी खाते हैं, और वे थोड़ा बहुत घर का काम भी कर देते हैं। घर में काउल्टी (पशुओं की देखरेख) है, उसका दूध भी निकालते हैं। पर अब वो लोग खाने का पैसा माँगने लगे—मतलब, क्या बताऊँ। वो अपने बेटे से भी दो रोटी का पैसा माँगते रहते हैं। मेरे पति सीधे हैं, दिमाग से। मैं बोलती हूँ, “जब गाँव में रहना है, तो अपने खाने का इंतज़ाम खुद देखो। मैं यहाँ से क्या ही करूँ? मैं जॉब करूँ या बच्चों को देखूँ या इतनी सारी ज़िम्मेदारियाँ निभाऊँ?” कुछ दिन सब ठीक रहता है, फिर वही चल रहा है। बस मैं यही सोचती हूँ कि मेरी बेटी जल्दी से कोई जल्दी वाला कोर्स कर ले और कहीं सेट हो जाए, क्योंकि मैं इतनी बजट में नहीं हूँ। सारा पैसा खाने, फोन में, बच्चों के स्कूल, ट्यूशन और बेटी के मेंटेनेंस में खर्च हो जाता है। मैंने अपनी बेटी को बहुत अच्छे से पाला है, अच्छा खाने-पीने का ध्यान दिया है। पैसे रहें या न रहें, कभी भी उसे कोई दिक्कत नहीं होने दी। कोई भी चीज़ के लिए मना नहीं किया। जब मैं गाँव में थी, तब भी मैंने काम किया—अपने ही घर में ज़िम्मेदारियों का काम किया। मेरा गाँव में घर बन रहा था, तो बाहर से क़रीब 10 मज़दूर आए थे घर बनाने के लिए। बात ये हुई कि उन 10 लोगों का खाना कौन बनाएगा? या तो किसी को रखना होगा या उन्हीं में से किसी एक को खाना बनाने पर लगा देना होगा। तब मैं अपने देवर को अकेले में बुलाकर बोली, “क्या ये काम मैं कर सकती हूँ? जो पैसा उन्हें देते हो, वो मुझे ही दे दो।” वो हँसने लगे और बोले, “अरे भाभी, आप कैसी बात कर रही हो। आपको काम करने की क्या ज़रूरत? घर में क्या कमी है? जो चाहिए हो, मुझे बता दो, मैं दे दूँगा।” मैं बोली, “नहीं मुना जी, मुझे कुछ नहीं चाहिए, बस बताओ क्या मैं ये काम कर लूँ? मुझे काम करना पसंद है।” तो वो बोले, “कोई बात नहीं, आप कर लो। घर में ही तो बनाना है। गैस और बर्तन-सामान सब आ गया है।” फिर मैं बोली, “मेरे ससुर को मत बताना कि मैं पैसे लेकर बना रही हूँ, नहीं तो वो बनाने नहीं देंगे।” तो वो बोले, “ठीक है, पक्का हो गया। आप कल से खाना बना देना।” तो मैं बोली, “पहले एडवांस देना होगा।” वो बोले, “ठीक है, जो कहो।” और उन्होंने मुझे 9000 एडवांस दे दिए। राँची से जब मेरे ससुर आए और सुना कि “मोना खाना बनाने का ज़िम्मा ले रही है,” तो वे बहुत ख़ुश हुए। बोले, “ये तो अच्छा है, खाना मोना बना देगी,” क्योंकि उन लोगों का खाना बनाने का खर्च बच गया—तीन लोग मिलकर घर बनवा रहे थे, तो तीनों का पैसा लगना था, और मेरे ससुर भी देते। इसीलिए वो ज़्यादा ख़ुश हो गए। उनमें दया नहीं थी कि “ये क्यों बनाएगी,” बल्कि उन्हें लगा कि उनका पैसा बचेगा। पर मुझे पता था कि कैसे करना है। मैं तो पैसे लेकर बनाती थी, और मैंने अपने देवर से एडवांस ले लिया। 2-3 महीने ही खाना बनाया था, फिर जब पैसे देने का टाइम आया, तो मेरे ससुर को पता चल गया कि “मोना पैसे ले रही है।” उन्होंने बहुत विवाद किया कि “घर का काम है, और ये पैसा ले रही है?” तो मैं बोली, “क्यों न लूँ, जब घरवाले ही ऐसे हों कि अपनी ही बहू से कह दें ‘कहाँ से दे, पैसा है ही नहीं,’ जबकि खेती हो रही है, दूध भी बिक रहा है, और मैं यहीं पर सबका ध्यान रख रही हूँ—आपका बेटा भी तो यही है, और मैं आपकी बहू हूँ—तो आप उसे कोई भी काम के लिए पैसा क्यों नहीं दे सकते?” इन सब बातों से मैं बहुत दुखी रहती थी। मैं पैसे बचा-बचाकर अपनी ज़रूरतें पूरी करती थी, और उसी पैसे को मैं जब मायके जाती थी, तो बोलती, “वहाँ से इतना मिला है,” और अपनी बेटी का ध्यान रखती, उसका क्रीम, लोन या जो भी ज़रूरी चीजें होतीं, ले आती। मैं वहाँ बहुत दर्द में रही—छोटी-छोटी चीज़ों के लिए रोया करती, चड्डी से लेकर बनियान तक के लिए तरसती थी। जब ज़रूरत होती, तो मैं अपने पति से कहती, मेरे पति मेरी सास से, और सास मेरे ससुर से—तब कहीं जाकर मुझे मिलता। यही हाल था उन दिनों। मुझे जीने का मन नहीं करता था, तब भी मैं...

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