मैं अपने लाइफ़ में कोई काम हो, तो भी भगवान को बोलती हूँ कि वही किए, और ना हो तो भी भगवान को ही बोलती हूँ। क्योंकि आज तक जितने भी मैंने काम किए, सब भगवान के नाम से, चाहे वो ग़लत हो या सही। जैसे, मैं बिहार जा रही हूँ और मेरे पास टिकट नहीं है, पर जाना भी है। तो जब निकलते हैं, तो भगवान से बोल देती हूँ, “हे भगवान, हे माता रानी, मेरा रक्षक करना और किसी अच्छी बोगी में बैठा देना।” सब टिकट तो होते नहीं, और मुझे स्लीपर में बैठना है, क्योंकि जनरल मेरे बस में नहीं है। फिर जब स्टेशन पर जाऊँगी, तो पहले ये सोचूँगी कि किस बोगी में बैठूँ, और एक बार भगवान जी, यानी दुर्गा माँ का ध्यान करूँगी। जो मेरे मन में बोगी आएगी, मैं उसी बोगी के पास खड़ी हो जाती हूँ और बैठ जाती हूँ। फिर ये सुख कि मुझे अपने आप सीट मिल जाती है और मैं आराम से सो लेती हूँ। और मुझे फ़्लैट लेना है, पर मेरे नाम का कोई लोन नहीं है। पहली बार लोन का काम करना है, जो कि फ़्लैट से जुड़ा है। अब देखो, भगवान किसी को खड़ा कर दें, जिससे मेरा घर हो जाए। शायद उन्होंने मेरी बहुत हेल्प की है, और मेरा एक अकाउंट खुला है। मेरे पास पहले कोई अच्छा अकाउंट भी नहीं था, कोई पेपर भी नहीं था, यहाँ तक कि आधार कार्ड भी सही नहीं था। एक में मेरी उम्र इतनी ज़्यादा लिखी है कि क्या बताऊँ—मेरे ससुर ने बनवा दिया था, उसमें बहुत ज़्यादा उम्र है। और एक मैंने बनवाया था जॉब करने के लिए, क्योंकि जॉब में ज़्यादा उम्र नहीं चलती है। यही हाल है मेरा। मेरी जो शादी हुई थी, वो भी ऐसी ही हुई थी। मेरे पति मुझसे 10 साल बड़े हैं और थोड़ा दिमाग में भी परेशानी है। क्योंकि जब वो कहीं जॉब नहीं कर पाते, तो मैं हर जगह देखती—पंडित से ये पूजा, वो पूजा। मान लो, जब से शादी हुई, तब से यही करते रहे घर पर कि क्यों आ जाते हैं जॉब छोड़कर? फिर जब मैं बाहर निकली, तो एक बार डॉक्टर को दिखाया, वहाँ मेरा बहुत पैसा लग गया था—धरूहेड़ा में दिखाया था। उसके बाद पता चला कि इन्हें दिमाग की दिक्कत है। उस समय के बाद, फिर मैं इन्हें बिहार ले गई और कुछ दिन वहाँ की दवा खाई। फिर बिहार में भी एक दिमाग के डॉक्टर से दिखाया। वो अभी तक वहीं की दवा खा रहे हैं और कोई काम नहीं करते, बस घर में ही रहते हैं, और घर में जो थोड़ा-बहुत होता है, वही कर लेते हैं। बस खाते-सोते रहते हैं। और मैं यहाँ एक उम्मीद में हूँ कि मेरे बच्चे कुछ पढ़-लिख जाएँ, और कहीं भगवान कुछ जॉब लगवा ही देंगे, तो सब ठीक हो जाएगा। इसी उम्मीद से मैं सुबह से रात तक जॉब करती हूँ। जब मैं गुड़गाँव आई थी, तो मुझे कुछ नहीं पता था कि कहाँ जाऊँ, कहाँ जॉब करूँ, पर भगवान पर भरोसा था कि भगवान तो हैं ही, जो करेंगे अच्छा ही करेंगे। और आज तक वही सब कर रहे हैं। मैं कुकिंग करती हूँ। जब कभी जाने का मन नहीं होता कुकिंग पर या जॉब पर, तो मैं अपने बच्चों का ख़र्च देख लेती कि कहाँ से आएगा, फिर अपने आप नींद उड़ जाती है और निकल ही पड़ती हूँ। मैं अपनी लाइफ़ में बहुत स्ट्रगल की हूँ, पर भगवान पर भरोसा रखा और होता ही गया। अब मेरी बेटी 12वीं में है और कहती है कि वो नीट करेगी, तो मुझे घबराहट होती है। मैं मना करती हूँ, “देखो, क्या होता है अब। बस 4 महीने बचे हैं उसे कॉलेज जाने में।” मैं भगवान से यही प्रार्थना करती हूँ कि “हे भगवान, अच्छा लाइन मिले मेरी बेटी को ताकि जल्दी जॉब कर ले।” आगे वो बेटी बढ़े, क्योंकि मुझे अब बिज़नेस करना है। जॉब से थक गई हूँ, पर जॉब इसलिए नहीं छोड़ती कि कहीं मैं डगमगा न जाऊँ। आगे मुझे बिज़नेस करने का बड़ा मन है। बहुत पहले मुझे टिफ़िन सेंटर खोलने का मन था, क्योंकि मैं बिहार में एनआईटी कॉलेज में कैंटीन में काम करती थी। कैंटीन में काम करती और वहीं सोती भी थी। वहाँ स्नैक्स का एक अलग सेक्शन था, जिसे सिर्फ़ मैं ही संभालती थी और चलाती थी। उसी समय मुझे वो करने का मन हुआ था—काश! मेरा खुद का होता, तो कितना अच्छा होता। मैंने बहुत कोशिश की, पर कोई सपोर्ट नहीं मिला, इसलिए छोड़ दिया और जॉब पर ही ध्यान दिया। अब यही सोचती हूँ, मेरी बेटी निकल जाए, फिर मैं पक्का बिज़नेस करूँगी। अभी मैं कंपनी छोड़कर बेबी-सिटिंग और कुकिंग कर रही हूँ, तो अच्छा काम चल रहा है। मेरे भगवान हमेशा साथ रहते हैं। आशीष जैन से भी जब मिली थी, तो भगवान ने ही मिलाया। उनसे मिले 3 साल होने वाले हैं। मुझे आशीष जैन कुछ ख़ास नहीं लगे थे और न ही कोई ऐसी बात थी, बस काम करते-करते अपने से भी ज़्यादा हो गए हैं। ऐसा मानो अगर कोई मेरी फ़ैमिली और आशीष जैन—दोनों में से किसी एक पर भरोसा करने को कहे, तो मैं आशीष जैन पर करूँगी। जितना मैं खुद पर भरोसा नहीं करती, उतना उन पर करती हूँ। लाइफ़ में अगर आशीष मुझसे कुछ भी माँगें, तो मैं देने से मना नहीं कर सकती। मैं यही सोचूँगी कि उन्हें ज़रूरी है, तो मैं दे दूँ। एक बार वो बहुत परेशान थे, उन्हें कुछ पैसों की ज़रूरत थी 3-4 महीने के लिए। वो सबसे हेल्प माँग रहे थे और मैं सुन रही थी। मैंने पूछा, “क्या हुआ?” तो वो मुझे नहीं बता रहे थे, सोच रहे थे, “क्या बताऊँ, ये क्या करेगी।” फिर मैंने बहुत पूछा, तो बोले, “मोना, मुझे 3 लाख की ज़रूरत है, क्या करूँ, कोई भी हेल्प नहीं कर रहा।” वो बहुत उदास थे। फिर मैं बोली, “मैं आपकी हेल्प कर दूँ?” तो बोले, “तुम्हारे पास है क्या?” मैंने कहा, “ज़्यादा नहीं, 1 लाख है।” वो बोले, “ठीक है, तुम दे दो, मैं बाद में लौटा दूँगा।” फिर मैंने बोल तो दिया कि “मैं दे दूँगी,” पर डर रही थी कि इतना मेहनत का पैसा है, कहीं डूब न जाए। मैंने उन्हें सब बता दिया कि “अगर मैं पैसा दे दूँ, तो कहीं मैं खुद मुसीबत में न आ जाऊँ।” फिर बहुत दिक्कतें देखीं, तो मैं भगवान का नाम लेकर बिना कोई सबूत लिए दे आई, और उनका काम हो गया। फिर 5-6 महीने बाद मेरी भाभी ने मुझसे हेल्प माँगी पैसे की। मैं आशीष को बताई कि “पैसा दे दो, भाभी को ज़रूरत है।” वो बोले, “नहीं मोना, मत दो, क्यों देना।” पर मैं नहीं मानी और भाभी को पैसा दे दिया, और मेरा पैसा वापस भी मिल गया। अब तो इतना भरोसा है आशीष जैन पर कि मेरे 2 लाख रुपये उनके पास रखे हुए हैं।
Pages
- Index of Lessons in Technology
- Index of Book Summaries
- Index of Book Lists And Downloads
- Index For Job Interviews Preparation
- Index of "Algorithms: Design and Analysis"
- Python Course (Index)
- Data Analytics Course (Index)
- Index of Machine Learning
- Postings Index
- Index of BITS WILP Exam Papers and Content
- Lessons in Investing
- Index of Math Lessons
- Downloads
- Index of Management Lessons
- Book Requests
- Index of English Lessons
- Index of Medicines
- Index of Quizzes (Educational)
Thursday, January 9, 2025
मोना की कहानी (अध्याय 6)
Index of Journals
Labels:
Mona Singh
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment