और मैं उस किस्मत को निभाने में लगी हूँ। मैं अपने पति से आज तक कुछ नहीं बोली, न ही कभी किसी चीज़ के लिए लड़ाई की, न ही कुछ उम्मीद रखी। शुरू में मैं बहुत रोई कि कहीं जॉब कर लो, पर वो नहीं कर पाते थे। मुझे लगता था, “किसी भी तरह कर लो, पर करो।” जब बिल्कुल नहीं कर पाए, तो मैंने सारी पूजा, सारे डॉक्टर—सब करके देख लिए। जो भी कर सकी, मैंने किया, पर कुछ नहीं हुआ। जहाँ भी वो काम करते, 15 दिन बाद छोड़ देते या उन्हें हटा दिया जाता। मैं अपने पति के काम के लिए बहुत लोगों से बात करती, और सब लोग मेरी मदद भी करते थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि “आप इतनी मेहनती हैं, और आपके पति ऐसे हैं, कैसे?” साफ़ दिखता था कि वो ठीक नहीं हैं। पर मैं भी कहती, “किस्मत थी, क्या कर सकते हैं?” कुछ कहने को शब्द ही नहीं बचे। मैं बहुत परेशान होकर अपने ससुराल से निकल गई, और आज तक जो भी हो, जैसा भी हो, मुझे डर नहीं लगता। एक पल के लिए भूल जाती हूँ कि मेरी शादी हुई है, मेरे बच्चे हैं या नहीं। कभी-कभी तो समझ ही नहीं आता कि मैं क्या हूँ, क्यों हूँ। फिर मेरी बेटियाँ दिखती हैं—मेरी दो बेटियाँ हैं। मैं उन्हें बहुत आगे ले जाना चाहती हूँ, पर पता नहीं ये भी मेरी किस्मत में है या नहीं। इतनी महँगाई में दो बच्चों को पढ़ाना किसी चुनौती से कम नहीं। पर भगवान पर भरोसा रखती हूँ तो अच्छा लगता है—क्या वो सब ठीक नहीं कर सकते? बिल्कुल कर सकते हैं, वो तो भगवान हैं, सब कर देंगे। यही सोचकर आज तक मैं जॉब कर रही हूँ और बच्चों को पढ़ा रही हूँ। अब मेरे बच्चे 11वीं और 12वीं में आ गए हैं। इतना लाने में मेरी टाँगों की हड्डियाँ तक घिस गईं। डॉक्टर को दिखाया था, उन्होंने कहा कि “टाँगों की हड्डी कमज़ोर हो गई है, ध्यान रखना होगा।” पर मैं क्या-क्या ध्यान दूँ? इसी तरह चल रहा है, और मैं काम कर रही हूँ। अभी तो मैं हरियाणा में हूँ। 4 साल पहले मैं राजस्थान में थी। क्यों? क्योंकि 4 साल पहले मैंने अपने पति की जॉब राजस्थान में लगवाई थी, और उनकी सैलरी अच्छी थी, तो मैं भी वहीं जॉब करना चाहती थी। पर मुझे काम नहीं मिला, तो मैंने एक फ़र्नीचर कंपनी में जॉब कर ली। वो मेरे लायक नहीं था, फिर भी मैंने सोचा, “मेरे साहब (पति) कर लें जॉब, मैं तो कहीं भी काम कर सकती हूँ,” और मैं उस फ़र्नीचर कंपनी में काम करने लगी। वो काम बहुत मुश्किल था, क्योंकि बहुत मेहनत वाला था। फिर भी मैं करती रही। उस कंपनी में ज़्यादा लेडिज़ नहीं थीं—6 या 7 ही थीं, और वे भी बुज़ुर्ग थीं। मैं अकेली जवान लड़की थी, पर फिर भी मैंने लड़कों के साथ मिलकर काम किया। बाद में मैंने 4 और लड़कियों को साथ रखवाया, ताकि मुझे अच्छा लगे। हम 5 लड़कियाँ हो गईं और सब काम करने लगे। सब अच्छा चल रहा था। मगर मेरी किस्मत! मेरे साहब 2 महीने मुश्किल से काम कर पाए। जिसने उन्हें जॉब दिलवाई थी, वह (सर) मुझे बहुत पसंद करता था, तो वह चाहता था कि “मदनजीत (पति) किसी भी तरह काम पर टिका रहे, ताकि इसे कोई परेशानी न हो।” उन्होंने मुझसे कभी कुछ ग़लत नहीं कहा, न ही मैं उनसे कभी मिली। बस फ़ोन पर ही बात होती थी, और वे कहते, “तुम टेंशन मत लो, मैं इसे जॉब से कभी नहीं हटने दूँगा।” इस बात से मैं बहुत खुश रहती थी कि मुझे और क्या चाहिए—एक अच्छी जॉब दिलवा ही दी, और पति पर ज़्यादा काम भी नहीं करवाते। यहाँ तक कि जो लड़के उस कंपनी में काम करते थे, वे मेरे परिचित ही थे, और वो मुझसे कहते, “सुनील सर तो मदनजीत के साथ काम भी करवाते हैं, नहीं तो इससे नहीं हो पाएगा।” इसी तरह चल रहा था। लेकिन जब आप इतना भी सहन नहीं कर पाते—हमेशा गेट पास लेकर आते रहते—तब भी सर मदद करते कि “कोई बात नहीं, सब हो जाएगा,” ऐसा वो कहते। एक दिन जैसे ही वो कंपनी में गए, तुरंत गेट पास माँगा, तो सर ने नहीं दिया, कहा, “अभी नहीं मिलेगा, थोड़ा रुकना होगा। कंपनी का नियम है कि 4-5 घंटे बाद ही गेट पास मिलता है।” तो उन्होंने समझा दिया, “किसी तरह टाइम पास कर लो, घूम लो, काम मत करो,” और क्या कर सकते थे—वो भी अपनी जॉब पर थे। थोड़ी देर हुई कि मेरे पति बाउंड्री कूदकर भाग गए। सर को ध्यान आया कि “मदनजीत कहाँ है, दिख नहीं रहा।” उन्होंने बहुत ढूँढा, अकेले ही। तब उन्होंने मुझे कॉल किया, “मदनजीत कहाँ है?” तो मैं बोली…
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Thursday, January 16, 2025
मोना की कहानी (अध्याय 14)
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Mona Singh
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