Wednesday, January 8, 2025

मोना की कहानी (अध्याय 4)

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Note: "कुछ जगह पर जहाँ मोना अपने ऑफिस के लोगों से बात कर रही है, वहाँ मोना के लिए 'डॉली' नाम का इस्तेमाल किया हुआ है, क्योंकि मोना ने ऑफिस में डॉली (अपनी छोटी बहन) के दस्तावेज़ लगाए थे।"
    
फिर एक दिन ऐसे हुआ कि मेरे बच्चों का स्कूल फी नहीं दे पा रही थी और मैं सब से पैसा माँगी 500, लेकिन किसी ने नहीं दिया। फिर मैंने एक दीदी की लड़की से माँगा, वो बोली, “हाँ मासी, मैं दे दूँगी आपको 500।” तो मैं बोली, “चलो ठीक है, तुम 5 दिन के लिए दे दो, फिर मैं वापस कर दूँगी।” मेरी भाभी के पास मेरा पैसा बाकी था, वो टाइम दिया है 5 दिन का, तब तक तुमसे ले लो, नहीं तो स्कूल वाले पेपर नहीं देने देंगे। मेरे बच्चों का हाफ़-ईयरली पेपर था, तो इसीलिए मेरा काम कर दो। और मैं उस दिन बहुत रोई भी थी, क्योंकि मुझे अपनी दीदी की लड़की से पैसा माँगना पड़ा। पर करूँ भी तो क्या, मजबूरी थी। फिर उसने हाँ बोली और 5 तारीख का टाइम ले लिया। फिर 5 दिन बाद मैंने कॉल की, तब उसने मेरा नंबर ब्लॉकलिस्ट में डाल दिया और नंबर भी बिज़ी जाने लगा। अब क्या करूँ, धोखा दे दिया। अब ऐसा हाल हुआ कि क्या बताऊँ। फिर मैंने 500 रुपये किसी और से सूद पर लिए और स्कूल में जमा किए। जब मेरे बच्चे का पेपर ख़त्म हुआ, तो मैंने ये सोच लिया कि बाहर कमाना पड़ेगा। और अब मैं बाहर जाने का मूड बना ली। फिर क्या, मैं अपने पति के साथ निकल गई हरियाणा। और जैसे ही ट्रेन में बैठी, मेरा पर्स चोरी हो गया। अब क्या, सारा पैसा उसी में था, और एटीएम भी, और आधार कार्ड भी, मतलब सब कुछ। अब तो न कुछ खाने का था और न ही एक भी रुपया। मेरे पति के पास भी कुछ नहीं था, सब उसी में था। फिर दिल्ली पहुँचे और जिस अंकल के पास मैं जा रही थी, उनको कॉल करके सारा बात बताई। वो बोले, “कोई बात नहीं, तुम कैब से आ जाओ, मैं पैसा दे दूँगा।” फिर मैंने कैब बुकिंग की और आ गई मानेसर में उनके रूम पर। फिर एक-दो दिन रेस्ट की और जॉब ढूँढना शुरू किया। और जिनके पास आई थी, उनसे भी बोली कि लगवा दीजिए साहब का। अब तो वो रोज़ साहब का काम नाइट में लगवाते और मैं साहब को नाइट से मना कर देती। वो आदमी के मन में कुछ चलने लगा, शायद। हम बोले कि मानते हैं कि नाइट चलता है, पर रूम अभी एक है, तो 7 दिन पहले डे लगवा दो। तो बोल रहे हैं कि “मेरे बस में नहीं है।” इसका मतलब, अब मैं थोड़ा समझने लगी थी कि वो ग़लत नज़र से देख रहा है।

फिर एक दिन वो आदमी सीरियस होकर बोला, “नहीं, नाइट करने दोगी तो ठीक, वरना जाओ अपना रास्ता देख लो।” मैं बोली, “ठीक है, नो प्रॉब्लम, मैं जा रही हूँ।” और मैं पहले वहीं रहती थी, तो मुझे जान-पहचान था कोई मकान मालिक, तो मैं जाकर बात की और सारा बताई कि ये ऐसी बात है, पैसा नहीं है, जॉब अभी नहीं कहीं लगा है, जब लगेगा तो ही पैसा देंगे। वो बोले, “कोई बात नहीं, ले लो सेपरेट रूम।” मैंने ले लिया और उनके रूम से आ गई। उसके बाद भी कोई जॉब नहीं लगा और घर भी नहीं जा सकते। किसी हाल में मैं घर नहीं जा सकती थी, क्योंकि मेरा काम करना अर्जेंट था। फिर मैंने सोचा, जब तक जॉब नहीं मिलता, मैं मज़दूरी कर लूँगी, पर घर नहीं जा सकती। तो मानेसर में एक चौक है, वहाँ पे सुबह सारे मज़दूर जाकर खड़े हो जाते हैं और वहीं से उनको मज़दूरी मिलती है, जिसको जो चाहिए। तो मैं भी वहीं जाकर मज़दूरी की लाइन में खड़ी हो गई। कुछ लोग आए और सबको ले गए, और हम लोगों को कोई नहीं ले गया, बोले, “नहीं, आप लोगों से नहीं होगा।” अब क्या, 9 बजे तक सब चले गए और हम लोग दोना रह गए। मैं रोकर आ गई रूम पर और मेरे पास कुछ नहीं था, बस भगवान का भरोसा था। जिस मकान में रूम लिया था, उसमें एक गैस थी और एक छोटा सिलिंडर, एक तवा, बेलन, चकला और एक ग्लास। बस यही बर्तन था। तो फिर मैं दुकान में गई, और वो दुकान मकान मालिक की ही थी, उससे उधार आटा लाई और लाकर बस रोटी बनाई। और मानेसर में 10-20 रुपये की सब्ज़ी मिल जाती है, मैं तो 10 की सब्ज़ी और 10 का दूध लाई। सब्ज़ी-रोटी खाई और दूध पीकर सो गई। दूध मेरा फ़ेवरेट है। मैंने अपनी भाभी से 500 रुपये मँगवाए थे, उससे थोड़ा काम चला।

फिर एक दिन मैंने अपने पति को भेजा, “आप जाओ चौक पे, आपको मिल जाएगा शायद। तो आप मुझे फोन कर देना, मैं आ जाऊँगी।” फिर ऐसे हुआ, उनको काम मिला और मुझे कॉल करके बोले, “आ जाओ।” मैं भागकर आई काम के लिए। और काम पर जाने लगी, तो जो ले जा रहा था, वो मुझे बोला, “मेडम, आप मत जाओ, वो आपके लायक काम नहीं है।” मैं बोली, “भैया, जाने दो ना, मैं कर लूँगी। नहीं कर पाऊँगी तो हटा देना।” मैंने बहुत रिक्वेस्ट की, तो मान गया और ले गया। काम जो था, वो बहुत मुश्किल था। स्कूल में काम था, 3 मंज़िल बन रही थी, जिसमें ईंटा ऊपर रस्सी से खींचकर चढ़ाना था। मैं देखकर डर गई, “ये कैसा काम है, कैसे होगा?” पर मैंने अपनी हिम्मत नहीं हारी। बिना कुछ खाए, मैंने ईंटा धोने का काम शुरू कर दिया। मेरे पति और मैं, और दो लोग और थे जो मज़दूर ही थे। उनको तो आदत थी रोज़ की। और बारी-बारी से ये करना था—एक-दो लोग तो ईंटा देते, लाकर दूसरा ईंटे को बाँधता और दो लोग खींचते। भगवन का नाम लेकर काम करना है तो करना है, मैं सोच ली थी। ईंट तो मैं बाँध नहीं पाती, मुझे नहीं आ रहा था, तो मैं बोली, “मैं खींच दूँगी।” और हम दोनों ईंटा खींचने लगे। भगवान जी को बोल दिया, “सहारा देना,” बस शुरू हो गई मेरी दिनचर्या।

फिर 1 बजे तक काम किया और लंच हो गया। पैसा तो था नहीं, जहाँ काम किए थे, उसने खाने के लिए 100 रुपये दिए और हम दोनों लंच कर लिए। लंच 2 घंटे का होता है। फिर खाना खाकर थोड़ा देर रेस्ट किए और फिर काम पर लग गए। 5:30 पे छुट्टी हो गई और पैसे मिले 700 रुपये। 100 रुपये काट लिए खाने के, 700 लेकर घर गए। रास्ते में एक बाल्टी, एक मग, एक कंघी और एक शीशा लिया जो नहीं था, और एक प्लेट। इतना सामान लिया और 20 रुपये की बनी हुई सब्ज़ी, क्योंकि घर पर सामान नहीं था, तो बनी हुई सब्ज़ी ही ठीक था खाने को। बाहर मिल जाता था। रोटी गर्म बना ली। फिर आते-आते 8 बज गए। आने के बाद नहाए, क्योंकि मज़दूरी करके आए थे, मिट्टी-धूल-धूप में पूरा दिन थे। आके नहाए, नहा के रोटी बनाई, खाई और सो गए। और सुबह फिर से काम पर जाना था। फिर जल्दी जागकर नहा के निकल गए, क्योंकि फिर से काम ढूँढना था। कंपनी तो थी नहीं कि 8 बजे या कोई टाइम पर जाना था। वहाँ तो चौक पर रोज़ जाओ, काम मिला तो ठीक, नहीं तो ऐसे ही।

फिर सुबह गए तो काम मिल गया, वही स्कूल में ईंट वाला ही। 3-4 दिन तो उसी स्कूल में काम मिला और रोज़ ऐसे करते—100 खाते, 700 बचते। तो 5 दिन में स्कूल में काम से जमा हो गया 3500। जमा होने के बाद पहले किराया दिया 2000, एडवांस जाता है ना, तो वो दे दिया। फिर 5 दिन बाद मुझे काम मिला मंदिर में सफ़ाई का—कोई पूजा थी, उसके लिए अच्छे से सफ़ाई करना था। मंदिर काफ़ी बड़ा था, तो 6-7 दिन सफ़ाई करनी थी। तो दोनों हम लोग काम किए वहाँ 7 दिन और पैसे मिले 4900, दोनों को कुल। काम वहाँ और भी था, पर थोड़ा मुझे अच्छा नहीं लगता था, मेहनत भी ज़्यादा थी, कर नहीं पा रहे थे। वो मजबूरी जो ना कराए... और अब तो मेरे पास पैसा हो गया था, दो दिन में मैं जॉब ढूँढ लूँ अपनी। तो मैं गई दूध-आइसक्रीम कंपनी और वहाँ जॉइनिंग कर ली। और “साहब” मेरे पति को मैं बोलती हूँ, वो काम नहीं करना चाहते हैं, इसलिए उनका नाम मैं साहब रख दी हूँ।

अब मैं कंपनी जाने लगी और मेरे साहब तो काम करना ही नहीं चाहते, और वो घर में रहने लगे। मैं बोलती, “जाएँ, काम कर लें कहीं, खोज लें,” तो बोलते, “नहीं, मैं घर जाऊँगा, अब मैं काम नहीं करूँगा, तुम जबरदस्ती ले आई हो और जबरदस्ती काम करा रही हो। तुम काम करो, मैं घर जाऊँगा।” फिर मैंने सोचा, “चलो, मैं काम खोज दूँ इनके लिए।” मैंने अपनी ही कंपनी में काम लगवा दिया, पर ये काम ही न करें, भाग जाएँ। मुझे फोन आया कि “ये आदमी काम नहीं करना चाहता, बार-बार बाथरूम जा रहा है, बताओ क्या करना है? ऐसे कैसे होगा डॉली, बताओ?” मैंने कहा, “छोड़ दो।” फिर इनको कहीं काम नहीं मिला और न ही मज़दूरी, क्योंकि इनका मन ही नहीं है काम करने का। इसमें कोई क्या करे। ऐसे-ऐसे 2 महीने बीत गए, मैं काम करती रही और ये कहीं न करें, सब जगह से भाग आते।

फिर मेरे बगल में एक आँटी थी, वो मुझसे बोली, “तुम्हारे पति घर में हैं? काम नहीं मिला आज तक?” मैं क्या बोलूँ। सच के लिए मैंने बोला, “नहीं आँटी, नहीं मिल रहा है, क्या करूँ?” आँटी बोली, “कोई बात नहीं बेटा, मेरे जान-पहचान का है, मैं तेरी बात करा देती हूँ।” वो मेरी बात करा दी, फोन लगाकर मुझे दे दी उस आदमी से। मैंने उसे सच्ची बात बता दी, “भइया, आप लगवा तो दोगे, पर ये कर नहीं पाएँगे।” तो वो और ज़्यादा बात करने लगा, और बात करते-करते 3 घंटे हो गए, पता भी नहीं चला कि मैंने क्या बात की और क्या नहीं। मैंने सब बता दिया, “ये काम ही नहीं कर पा रहे हैं, आप कैसे करोगे?” और मैंने बोला, “आपको मैं जानती भी नहीं हूँ।” तो बोला, “कोई बात नहीं, कोई किसी को नहीं जानता, जानते-जानते ही जान जाओगे।” और वो बोला, “मैं आपके पति को जॉब पर लगवा देता हूँ अपने पास, मुझे कोई दिक्कत नहीं होगा।” मैं बोली, “देख लो, कर तो लेंगे, पर 15 दिन ज़्यादा से ज़्यादा करेंगे।” वो बोला, “नहीं, मैं अच्छी पोस्ट पर लगाऊँगा और पैसे भी अच्छे दूँगा।” मैं बोली, “ठीक है।” फिर मैंने बोला, “मैं अपना जॉब यहाँ का नहीं छोड़ सकती।” तो बोला, “ठीक है, तुम वहीं रहो, इनको मैं किसी के साथ शिफ़्ट करा दूँगा, जब ये ठीक जाएँगे तब आना।” मैं बोली, “ठीक है।” और वो बोला, “तुम्हारा एक भी पैसा नहीं लगेगा, मैं लेने आ रहा हूँ।” और वो लेने आ गया संडे को, और संडे को ही लेकर चला गया। और मंडे को जॉब लगवा दिया उसनें, जो बोला वही किया।

फिर उससे भी मेरी थोड़ी-थोड़ी बात होने लगी, क्योंकि मेरे पति के पास फोन नहीं था, तो उसी के फोन पर बात होता था। फिर ऐसे ही एक महीना बीत गया, और वो मुझे बोला, “अब तो इसकी फ़र्स्ट सैलरी आ गई, अब तुम भी आ जाओ, तुम्हारी भी यही लग जाएगी।” मैं बोली, “ठीक है।” और मेरे पति भी बार-बार फोन करने लगे, “कि आ जाओ, दिक्कत हो रहा है खाना बनाने में।” फिर मैं जयपुर चली गई। मेरे साहब का वहीं पर जॉब लग गया था ओमैक्स कंपनी में, क्वॉलिटी में लगा, सैलरी 20000 दिलाई थी उस आदमी ने, सब से ज़्यादा सैलरी लगवा दी थी, क्योंकि सैलरी वही आदमी के हाथ में थी। ऐसे ही फिर मैं जयपुर गई, वहाँ जॉब मेरी भी लगी, मैं भी करने लगी। मेरी सैलरी कम थी वहाँ, क्योंकि मेरे कुछ डॉक्यूमेंट कम थे, इसलिए। पर कोई बात नहीं, दोनों कमा तो रहे हैं ना।

ऐसे ही बहुत अच्छा से बीता कुछ महीना। और मेरे साहब... अब फिर से घर जाने की जिद करने लगे। मई टाइम था। मैं बोली, “कुछ महीना और रुक जाओ, फिर सर से आपकी छुट्टी पास करा दूँगी, अभी तो 3 महीने ही हुआ है। वो बोले हैं कि 6 महीने कर लेंगे तो छुट्टी मैं करा पाऊँगा।” पर मेरे साहब को कोई मजबूरी नहीं, बस जाना है तो जाना है। जॉब तो जैसे-तैसे 3 महीने किए, बहुत छुट्टी करके लिए, पर वो सब मैनेज कर रहे थे कि कोई बात नहीं, “मैं सब ठीक कर दूँगा, कैसे भी इसको मन लग जाए।” बस मैं यही सोच रही हूँ। “मोना, तुम अच्छे से यहाँ रहो, मैं हेल्प करूँगा।” बात ये थी कि वो आदमी भी मुझे पसंद करने लगा मन ही मन, पर मैं बोलती नहीं, “ये सब मेरे लिस्ट में नहीं है, मैं पहले से परेशान रहती हूँ और अब ये सब नहीं। तुमको मेरा हेल्प करना है, करो, नहीं करना है मत करो, बात ख़त्म, ओके?” तो वो बोला, “यार, ऐसी कोई बात नहीं है, तुम ग़लत मत लो, मेरी अच्छी दोस्त तो बन सकती हो ना।” मैं बोली, “ठीक है, ना दोस्त, ना दुश्मन, ऐसे ही ठीक है।” तो वो हँसा, बोला, “जैसे तुम्हारी मर्ज़ी, पर तुम बहुत अच्छी हो।”

फिर मेरा पति एक दिन ऐसा मुझे मजबूर किया कि उसका टिकट करा के मुझे भेजना पड़ा कंपनी में। बॉउंड्री कूदके पता नहीं कैसे आ गया रूम पर। फिर मेरे पास सर का कॉल आया, “बोलो, मदनजीत कहाँ है?” मैंने बोला, “मैं तो कंपनी में हूँ, कैसे बताऊँ?” फिर मैं गेट पास लेकर गई, तो वो रूम पर थे। मैं फोन करके बोली, “वो तो रूम पर हैं।” फिर वो जो किए थे, उससे पता नहीं क्या होता, पर भगवान बचा लिए। वो कूदकर भागे थे, इसका कोई सबूत नहीं मिल पाया, क्योंकि कैमरा में नहीं केच हुआ, तो बात संभल गई। और सर बोले कि “मैं चिट्ठी दिया था, भूल गया था।” उसके बाद वो सर बोले, “अब यहाँ जॉब मैं नहीं लगवा पाऊँगा, बहुत बड़ा काम कर दिया है इसने।” फिर मैं बोली, “चलो, आप ऐसे ही रहो, घर जाकर क्या करोगे, यहीं रहो मेरे साथ।” पर नहीं, वो कैसे तरह, 10 दिन रहे और मारपीट करने लगे घर जाने के लिए। फिर मैं मजबूरी में भेज दी, “रहेंगे नहीं तो क्या करूँ, जाओ।” मेरी शादी की सालगिरह थी, मैं बोली “मना लो, फिर जाना,” नहीं, “मुझे तो जाना ही है,” मैंने चला गया। फिर मैंने तात्कालिक टिकट करा के भेज दिया। और अब 5 साल हो गए, मैं कभी भी जॉब नहीं लगवा सकती, क्योंकि ऐसे-ऐसे काम कर देते हैं कि भगवान जी बचा सकते हैं। पहले मैं हमेशा भूल जाती थी कि “चलो, फिर एक बार और लगवा के देखते हैं,” पर अब जब से ये किए, तब से हिम्मत करके फिर याद आता कि “नहीं भाई, भगवान कितना बचाएँगे, नहीं, अब नहीं, ऐसे ही ठीक है।” तब से आज तक मैंने कहीं भी जॉब की बात नहीं की। हालाँकि वो बहुत बोलते हैं, “कहीं लगवा दो, एक बार भरोसा और कर लो।” मैं कभी-कभी सोचती हूँ कि लगा दूँ कहीं, गारमेंट में कुछ, पर फिर याद आती कि “नहीं, इनको काम में मन नहीं लगता, कहीं कोई परेशानी न आ जाए।” सच बात तो ये है कि मेरे पति के कारण कितनी दुविधा हो जाती है काम की बात करते-करते, फिर उनकी जॉब की पैरवी करती, “चलो कोई बात हो तो संभाल लेना,” ये इस टाइप से। थोड़ा काम नहीं कर पाते, तो उनके हिसाब से देख लेना। ऐसे में वो मेरा दोस्त बन जाता, यही होता ना, चाहते भी दोस्ती हो जाती। पर किसी से ज़्यादा दोस्ती नहीं करती, घूमना या कहीं जाना ये नहीं करती। तो मैं सोचती, “चलो, बात करने से क्या ही देखते होंगे।” ऐसे, तब तक मेरे पति ही भाग आते, उनका काम में कोई इंटरेस्ट नहीं है। ऐसे कैसे काम होगा।

तो अब 5 साल से मैं बिलकुल अकेली हूँ और बस जॉब और बच्चों पर ध्यान है, बाक़ी कोई नहीं। फिर मेरा एक जान-पहचान का कोई फ़ेसबुक पर मिला और हाई-हैलो हुआ और वो बोली, “डॉली, मानेसर आ जा, यहाँ मैं काम दिला दूँगी। करना, तुम्हारी पुरानी कंपनी भी खुल गई है।” पहले मैं जिस कंपनी में जॉब करती थी, वो जल गई थी, लाइफलॉग कंपनी थी, जिसमें मैं ऑपरेटर थी, 3 एमएल की सीरिंज बनाती थी मैं। मैं बोली, “ठीक है, आती हूँ।” वैसे मेरी सैलरी 8000 ही थी, इसलिए मैं आना ही सोच ली। वहाँ तो मैं पति के लिए गई थी, अब वो तो भाग ही गए, तो अब 8000 कमा के क्या करूँ। फिर मैं आ गई मानेसर में, आके मैंने जॉब फिर से ट्राई की, पर नहीं लगी कहीं, वेकैंसी नहीं थी। तो नहीं लगी। फिर संधार कंपनी में लगी मेरी जॉब, 12 घंटे की, 16000 सैलरी। 7 से 7 ड्यूटी। मैं लग गई और काम शुरू, काम लगा पैकिंग पे, काम अच्छा लगने लगा, मन भी लगने लगा और सब ठीक चल रहा था। 1 साल बाद फिर मेरी बहन का 25वाँ मैरिज डे आ गया, और वो बोली कि “अच्छे से मनाएँगे, सबको आना है 3 दिन के लिए।” भाई, सब बहन तो हाउसवाइफ़ हैं, उनको क्या दिक्कत। मैं ही दूर थी। मैंने छुट्टी ले के 4 दिन के लिए चली गई बहन के पास, सारा तैयारी की और चली गई। बच्चे भी मेरे गए, पूरा परिवार गया, सब लोग आए पूरे परिवार के साथ, पति बहुत अच्छा था, बहुत मज़ा आया था।

फिर 4 दिन बाद मैं जॉब पर आ गई। आने के बाद ये हुआ कि मेरी कंपनी गुड़गाँव जा रही है, अब यहाँ काम नहीं करना, गुड़गाँव जाओ तो ठीक, नहीं तो दूसरा देखो। अब क्या करें, फिर से परेशान होने लगे, अब कहाँ जाएँ। 6 महीने का टाइम था, कंपनी को बदल लो, सर कंपनी भी दे रहे थे, खोजना नहीं था, पर एक प्रॉब्लम था कि सब 8 घंटे की थी, तो 8 घंटे का पैसा 12 तक लास्ट ही रहता है। इसके चलते ज्वॉइनिंग कर पा रही थी या नहीं... और एक महीना बैठ गई। सोचा, “जब नहीं मिलेगी तो कर लूँगी, तब तक ट्राई करती रहूँ, ट्राई करती जाऊँ,” पर नहीं मिला। फिर एक दिन मेरी फ्रेंड मिली, जो बहुत पुरानी थी। मिली तो उस दिन बस नंबर दे दिया उसको अपना, और वो कॉल की, फिर मिलने आई। तो मैंने उसको सारा बात बताई। तो वो बोली, “एक काम कर, सोसाइटी में कुकिंग कर ले, अच्छा पैसा मिल जाएगा। जितना तुम मेहनत करोगी, उतना मिलेगा।” मैं बोली, “ठीक है, कर लेंगे, मुझे तो पैसे से मतलब है।” वो बोली, “मैं एक कुकिंग दिला दूँगी, बाकी तू खोज लेना।” मैं बोली, “ठीक है, दिला दो।” फिर मैं आ गई सोसाइटी मैप्सको में, और एक कुकिंग ज्वॉइनिंग कर ली। फिर मुझे 3-4 दिन में 3 कुकिंग मिल गई। तो सुबह 6 बजे कुकिंग शुरू होता और 11 बजे तक ख़त्म। तो 11 बजे बहुत धूप होती थी, सोसाइटी में ऑटो नहीं चलता या बहुत कम चलता है, तो कभी-कभी पैदल जाना पड़ता। तो 12 बजे तक रूम पहुँचते, ये सब बहुत दिक्कत होता। फिर 4 या 4:30 बजे निकलना पड़ता शाम का कुकिंग के लिए, और रात के 8 बजे तक जाता। ऐसे ही 2-3 महीने बीत गए। और मैं सोचती, “यार, सोसाइटी में ही 8 घंटे की कोई काम मिल जाता, कुछ तो ठीक रहता।”

फिर मेरे को एक कॉल आया कि एक बच्चे का काम है, करोगी? “हाँ, करोगी तो मिल लो आके, सिर्फ बच्चे को ही देखना है।” तो मैं आई, आके बात की, उनको मैं अच्छी लगी और वो मुझे आने के लिए बोल दिए कि “कल से आ जाओ आप, 9 बजे से 6:30 तक, पैसा 14000।” मैं बोली, “ठीक है।” फिर मैं अब यही रहने लगी, आना-जाना नहीं हो पा रहा था। सुबह में ही नहा-धोके आ जाती, मेरा यहाँ बस नाश्ता ही था, खाना मैं लेके आती थी। फिर मैं कुकिंग और बेबी सिटिंग दोनों करने लगी। फिर एक महीने बाद ही मेरी दीदी के घर जीजा जी का ऐक्सिडेंट हो गया और वो अब नहीं रहे। ये ख़बर मिलते ही मैं भागकर चली गई, सब छोड़कर काम, वहाँ से मैं कैसे आती। मैं 15 दिन वहीं रही, सब मेरा इंतज़ार कर रहे थे। फिर 15 दिन बाद आई, तो सारा काम मेरा बचा हुआ था, किसी ने नहीं लगाया था किसी को। तो मैंने आके फिर से जॉब शुरू कर दी। मेरे पास दो कुकिंग थी और एक जॉब करने लगी आके।

फिर जॉब करते-करते एक दिन जब मैं घर जा रही थी, तो मैंने लिफ़्ट ली एक आदमी से जो कि मैप्सको का ही था। मैं रात में आकर लिफ़्ट से नहीं जाती, पैदल जाती थी, क्योंकि ऑटो नहीं छूटती थी। तो उस दिन जो मैंने लिफ़्ट ली, वो मेरा आख़िरी लिफ़्ट होगा। वो मुझे मेरे चौक तक छोड़ा और बात की, “आप क्या करती हो, कहाँ से आ रही हो?” मैंने सब बताई कि ये काम करती हूँ। तब वो बोले, “मेरी भी कुकिंग कर दोगी?” मैं बोली, “नहीं, मेरे पास टाइम नहीं है।” वो बोला, “ठीक है, एक काम करो, मेरा नंबर ले लो। जब कभी भी टाइम मिले, कॉल कर लेना।” मैं बोली, “ठीक है।” नंबर ले लिया मैंने और रूम पर आ गई। उसके दो दिन बाद जहाँ मैं कुकिंग करती थी, वो भैया से बहस हो गई और मैंने वहाँ छोड़ दिया। बहस इसलिए हुआ कि मैं वहाँ गई, बेल बजाई, कोई गेट नहीं खोला। और वो बोले कि “तुम आई ही नहीं।” तो मैंने सबूत भी दिया कि गेट पर आपका सामान रखा था, वो नहीं माने, बार-बार यही बोल रहे कि “तुम आई नहीं।” फिर मुझे गुस्सा आ गया और मैं बोल दी, “ठीक है, नहीं आई थी, तो अब नहीं आएगी।” तो मैंने छोड़ ही दिया।

उसके 2 दिन बाद मैं जिस आदमी का नंबर ली थी, उसको कॉल की। और मैं बोली, “कब से आऊँ कुकिंग पे?” वो बोले, “जब से मन हो, आ जाओ।” फिर मैं गई कुकिंग करने, तो वहाँ तो कुछ भी नहीं था, सिर्फ़ घर था और कुछ नहीं। मैं बोली, “क्या बनाऊँ, कुछ तो है नहीं।” वो बोले, “सामान तुम ले आओगी?” मैं बोली, “मैं कैसे लाऊँगी, मेरे पास गाड़ी नहीं है। आपके पास, आप ले आओ, कल से मैं आके बनाऊँगी।” तो फिर वो बोले, “क्या तुम मेरे साथ चलोगी, मुझे नहीं पता कि क्या लाऊँ। और मैं नया हूँ यहाँ पर, दुकान का बाज़ार का कुछ नहीं पता।” मैं बोली, “हद्द है, मेरे पास टाइम का प्रॉब्लम है।” फिर मैं सोचने लगी, “कैसे का हेल्प करना चाहिए,” और मुझे तो हेल्प करना पसंद है, टाइम निकालकर कर देती। मैं बोली, “अभी ही चलो, नहीं, अभी एक घंटे में सामान ले आते हैं।” और 8 बजे रात में मानेसर गई, और थोड़ा-बहुत बर्तन ले आई—कुकर, कड़ाही, और जो भी ज़रूरी होता है, एक-दो लाकर रख दिया। उस दिन तो खाना नहीं बना, क्योंकि रात हो गई थी, मुझे रूम पर जाना था। दूसरे दिन से कुकिंग करने लगे।

कुकिंग करते अभी 15 दिन ही हुआ था कि “आशी जैन” बोले फोन करके, “कल से मत आना, मोना।” मैं बोली, “क्यों, क्या हुआ, क्यों नहीं आऊँ?” वो बोले, “ऐसे ही, मत आना।” मैं सोचूँ, “अरे, ऐसा क्या हुआ कि खाना नहीं बनवा रहे।” मैंने बहुत पूछा तो वो बोले, “मेरे पास पैसा नहीं है तुम्हें देने के लिए।” तो मैं बोली, “अगर ये बात है तो मैं बिना पैसे के बना दूँगी, कोई बात नहीं।” मुझे तब बहुत बुरा लगा कि पैसे के चलते मेड को मना करना पड़ रहा है। तो मैं बोली, “अगर पैसे ही प्रॉब्लम है तो मैं बिना पैसे के ही बना दूँगी, अगर कोई और बात है तो बोलिए।” वो बोले, “नहीं मोना, पैसा नहीं है, थोड़ा सा दिक्कत है।” तो मैं बोली, “मैं बना दूँगी, एक टाइम का तो है, मैं मैनेज कर लूँगी, कोई बात नहीं।” तब से मैं क़रीब 2 महीने तक कुकिंग बिना पैसे की ही करती रही। तब वो बोले, “मोना, तुम एक काम करो, यहीं रहो मेरे फ़्लैट में ही, तुम्हारा रूम का किराया बच जाएगा।” मैं बोली, “नहीं, मैं नहीं रह सकती, मैं क्यों रहूँ, तुम अकेले रहते हो, ये काम नहीं करूँगी।” मैं मना कर दी।

ऐसे ही दिन बीत गया। और मेरी दीदी की लड़की का जॉब गुड़गाँव में लगा, तो दीदी की लड़की बोली, “मासी, मेरा गुड़गाँव में ही जॉब लगा है, मैं आपके पास आ रही हूँ।” मैं बोली, “ठीक है, आ जाओ, कोई बात नहीं है।” तो मैंने फिर आशी को बोली सारा बात कि “सानू आ रही है, आपका एड्रेस दे दूँ? क्योंकि मेरा रूम इतना अच्छा नहीं है, इसलिए वो यहाँ अच्छे से रहेगी, जब जाएगी तो जाएगी।” तो बोले, “ठीक है, कोई बात नहीं, दे दो एड्रेस।” और मैंने दे दिया। सानू आ गई और वो रुकी नहीं, एक दिन में ही चली गई। वो तो चली गई, पर मैं यहाँ सामान ले आई थी अपना कपड़ा सारा, तो उसी दिन से मैं यहाँ रहने लगी। फिर वहाँ वाला रूम ख़ाली कर दिया और यहीं शिफ़्ट हो गई। फिर मैं यहाँ पर एक साल रही। एक साल में मैंने यहाँ आशी का सारा काम बिना पैसे का किया। फिर सोसाइटी में कुछ ऐसा हुआ, और मुझे यहाँ से जाना पड़ा। मैंने फिर से रूम लिया 3000 में। फिर उस रूम का किराया आशी जैन देने लगे 3000। फिर ऐसे ही मेरी आशी के यहाँ 3000 सैलरी हो गई। फिर मैं ऐसे रहने लगी। पर मेरा सारा सामान आशी के घर पर ही है और मैं बस अपने रूम पर सोने चली जाती हूँ। और सुबह में यहीं आ जाती हूँ और यहीं से काम पर चली जाती हूँ। ऐसे भी मेरा जो जॉब था, वो पूरे दिन का था 8 बजे तक—8 से 8 मैं काम करती थी, 8 बजे आती यहाँ पर, खाना बनाती और फिर चली जाती 9 या 9:30 तक। अब ऐसे ही चल रहा है। जब तक आशी जैन की शादी नहीं होगी, तब तक ऐसे ही रहेगा। फिर जैसा होगा, वैसे कर लेंगे। अभी मैं आशी जैन के पास ही रहती हूँ। और फिर मेरी सैलरी आशी के घर 7500 हो गई, क्योंकि जो बच्चा था, वो बड़ा हो गया और स्कूल जाने लगा, तो मुझे टाइम मिल गया। और मैं उनका खाना से लेकर सारा घर का काम करने लगी। और आशी जैन का दो बार प्रमोशन हुआ, तो अब उनको पैसे देने में दिक्कत भी नहीं थी। मुझे ख़ुद बोले, “मोना, अब तुम सारा काम कर लो और जो पैसा बनता है ले लो और कर लो।” मैं बोली, “ठीक है।” तो अब मैं सारा काम करती हूँ और 7500 मिलने लगा। अब ऐसे ही सब ठीक चलता गया। आशी का भी सब ठीक है, अच्छी पोज़िशन पर है, और मैं भी काम कर रही हूँ। पर अब आशी जैन को शादी करनी है, वो बहुत लड़कियाँ देखते रहते हैं, पर अभी तक कोई पसंद नहीं आया है।

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