तो मैं अपनी छोटी बहन का डॉक्यूमेंट लेने गई, फिर लेकर आई और अपनी बेटी को अपनी भाभी के पास छोड़ आई। अब मेरी दोनों बेटियाँ, एक नानी के पास और एक मेरी भाभी के पास रहने लगीं। जॉब का अभी साल लगने वाला ही था कि मेरे मायके से कॉल आने लगा कि अपना बच्चा ले जाओ। अब जैसे ही ये सुना, मेरा हाल खराब हो गया कि जॉब के साथ बच्चे कैसे संभाल पाऊँगी। क्या बताऊँ तब क्या हुआ। मैं बहुत परेशान थी। फिर मैंने ये सोचा कि बात नहीं है, मेरी दोनों बेटियाँ बड़ी हो जाएँगी। जो कि दोनों छोटी ही थीं, एक 6 साल की और एक 3 साल की। फिर भी थोड़ा उम्मीद थी कि बड़ी होंगी, अब खेल सकती हैं और रह सकती हैं। तो मैं अपनी दोनों बेटियों को हरियाणा ले आई। फिर अपनी बेटियों को घर में रहना सिखाया और ये बताया कि बेटा, घर से कभी भी बाहर नहीं निकलना, जब तक माँ न आए। तब तक कमरे से बाहर नहीं आना। मेरी दोनों बेटियाँ मेरी बात बहुत मानती हैं और समझदार भी हैं। फिर थोड़े महीने बाद मैंने अपनी दोनों बच्चियों का एडमिशन पास के स्कूल में करा दिया और फिर ट्यूशन लगवा दी। दोनों को सब कुछ सेट कर दिया। सब ठीक चल रहा था। फिर मेरी बेटी का स्कूल से कंप्लेंट आने लगा कि बच्चे स्कूल क्यों नहीं आ रहे हैं, क्या प्रॉब्लम है। और मुझे स्कूल वालों ने बुलाया। मैं बोली, "मैं तो रोज़ तैयार करके भेजती हूँ। ये तो रोज़ आते हैं।" अब एक और प्रॉब्लम आ गई। अब मैं क्या करूँ? स्कूल तो है 8 बजे और मेरी कंपनी है 6 बजे। अब कैसे भेजूँ इनको स्कूल? अब तो समझ में ही नहीं आ रहा था कि कैसे बच्चों को स्कूल भेजने का कोई उपाय निकालूँ। बच्चे बर्बाद हो जाएँगे। एक लेडी के लिए बहुत बड़ा चैलेंज होता है कि बच्चा देखे या जॉब। जॉब देखूँ तो बच्चा प्रॉब्लम में और बच्चा देखूँ तो जॉब। और दोनों ही ज़रूरी हैं क्योंकि कहाँ से खिलाती, कहाँ से क्या करती? फिर मैंने एक और रास्ता निकाला। बच्चों को तैयार करके प्रिंसिपल मैडम के पास छोड़ आने का सोचा। और दोनों को रोज़ वहीं छोड़ आती और कंपनी से गेट पास लेकर कभी-कभी देखने आ जाती। तो फिर सब ठीक हो गया और बच्चे स्कूल टाइम से जाने लगे। फिर उनकी आदत हो गई और वो रोज़ टाइम से जाते और आते। फिर ऐसे ही चला। सब कुछ अच्छा, सब अपने काम टाइम से होते रहे। बच्चों का भी और मेरा भी। अब एक और प्रॉब्लम आई कि मेरी कंपनी में आग लग गई और मेरी जॉब चली गई। कुछ महीने तो कंपनी ने पैसे दिए, फिर कहा कि दूसरे जगह काम करो। उसके बाद मुझे कोई अच्छी जॉब नहीं मिली और मैं कुछ महीने कोई काम नहीं कर पाई। उसके बाद मुझे किसी ने बताया कि गार्ड का जॉब पता चला। मैं गई, मेरा इंटरव्यू हुआ, पर मेरी उम्र ही नहीं थी तो नहीं हो पाया। तो वहीं पर एक लड़का था जो फील्ड ऑफिसर था। वो मेरे पीछे पड़ गया और मैं भी उसके जाल में फंस गई। वो लालच देता कि जॉब की टेंशन मत लो, मैं हूँ। कहीं न कहीं लगवा दूँगा। मैं सोची चलो लगवा ही देगा। और मुझसे बात करता ऐसे बहाने। और मैं बात करती कि चलो जब तक जॉब नहीं लगी है, बात कर लेते हैं। क्या दिक्कत है बात करने में? ऐसे दिन बीत गए और वो जॉब बहुत दिन तक नहीं लगवा पाया। फिर मैंने उससे फोन पर बात करना बंद कर दिया कि छोड़ो, ये ठीक नहीं। बात तो कोई और थी। वो मुझे अकेले में बोलता कि वहाँ जाओ तो हो जाएगा। पर मैं अकेले नहीं जाती, किसी न किसी के साथ जाती। ऐसे ही दिन बीत गए। फिर एक दिन फोन पर बोला कि अकेले आया करो ऑफिस में, तभी जॉब लगेगी। तुमको जॉब करनी है तो तुम ही आओ। बस और किसी को क्यों लाती हो? भरोसा नहीं है क्या? मैं बोली, "नहीं, मैं अकेले नहीं आ सकती। तुम ठीक नहीं लगते मुझे।" तो वो हंसने लगा। बोला, "ऐसी कोई बात नहीं। मैं तुमको पसंद करता हूँ बस। और जबरदस्ती नहीं करूँगा कुछ भी। तुम बहुत अच्छी हो। और लड़कियों जैसी नहीं हो।" ये सब बात हुई। बात ये है कि मेरी उम्र कम थी और मेरे पास ज़िम्मेदारी ज़्यादा। तो मुझे लेकर वो बहुत पसंद करते थे। पर मेरा ध्यान बस काम पर था क्योंकि मुझे कुछ करने का जुनून था। दोस्त और बॉयफ्रेंड नहीं चाहिए। काम किया और घर पर रहे। ज़्यादा काम किया, ओवरटाइम किया। ये सब। ये नहीं कि घूमने चले गए, छुट्टी कर ली। ये सब नहीं। सारी लड़कियाँ छुट्टी करतीं पर मैंने कभी नहीं। मैं फूल अटेंडेंस बनाने में रहती। इसलिए मेरी आदत घूमने में नहीं थी। संडे को भी मैं ओवरटाइम करती। ऐसे ही मेरा टाइम निकल गया। और मुझे ये नहीं पता कि मैं लड़का हूँ या लड़की। मैं कभी तैयार भी नहीं होती। बस सिंपल रहती। लड़की जैसे लड़का रहता, वैसे ही। क्योंकि माहौल खराब है बहुत। फिर भी कोई न कोई टकरा जाता। पर मैं ध्यान नहीं देती। मुझे ये सब से ज़्यादा से ज़्यादा दूर रहना था क्योंकि मैं तो अपना फोकस काम में देती। घूमने ये दोस्ती में नहीं थी। कभी-कभी मैं भी यही सोचती। मेरी सारी फ्रेंड का दोस्त है। सब लोग बोलते, "दोस्त भी ज़रूरी हैं। काम ही काम सब नहीं है लाइफ में। टाइम स्पेंड करने के लिए या और कुछ के लिए दोस्त होना चाहिए।" पर मैं नहीं मानती थी। मैं बोलती, "नहीं, दोस्त तो सब दोस्त ही हैं। दुश्मन तो कोई नहीं है।" तो मेरी दोस्त मुझे बोलती, "जाओ ठीक है, तुम जैसे रहो। कोई बात नहीं।" पर मैंने दोस्त कभी नहीं बनाए। ऐसे मेरी जिंदगी है। क्या ही बताऊँ और क्या छुपाऊँ। ये समझो लाइफ बहुत व्यस्त है।
Saturday, January 4, 2025
मोना की कहानी (अध्याय 2)
Index of Journals
Labels:
Journal
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment