पर मैं परेशान बहुत हूँ जॉब के लिए, तो मैं अब ख़ाली हूँ, पूरे दिन बुरा लग रहा है। इसलिए मैं अपना बीता हुआ कल लिख रही हूँ, जो मुझे याद है, और लिखने से सब सामने भी दिखता है। जॉब करने के लिए जो अंकल बोले थे, वो मेरे लिए किसी भगवान से कम नहीं थे। ना मैंने उन्हें सब कुछ बताया, ना मैं यहाँ तक आती। जब अंकल से बात होती थी, तब मेरे पति भी सब सुन रहे थे, साथ में थे। फिर मैंने कहा, “ठीक है, मैं अपनी बेटी को कहीं छोड़कर आते हैं।” फिर मैंने अपनी एक 2 साल की बेटी को नानी के पास छोड़ दिया। जबरदस्ती मेरी माँ नहीं रखना चाहती थी, कि वो किसी को कैसे रखे, ख़ासकर मेरे बच्चों को। फिर भी मैंने कहा, “कुछ दिन के लिए रख लो,” हाथ जोड़ लिए। तो मेरी दोनों बेटियाँ नानी के पास छूट गईं—एक 5 साल की और दूसरी 2 साल की थीं। इतने छोटे-छोटे बच्चों को छोड़कर मैं निकल गई, जॉब करने चली गई, बिलकुल अकेली—ना कोई पैसा, ना कोई सहारा। बस मेरे पास एक भरोसा था भगवान पर, और कुछ नहीं। ना ही कोई मेरी जान-पहचान थी। किसी से बस उम्मीद और भगवान पर भरोसा—यही था। मैंने अपने भाई को कहा, “भैया, मैं जा रही हूँ दिल्ली-हरियाणा, अब जॉब करूँगी।” भैया बोले, “कैसे करोगी? कभी अकेली गई हो क्या?” मैंने कहा, “नहीं, पर चली जाऊँगी।” तो मेरी बहन थी, प्रियंका नाम की, वो मेरे भाई से बोली, “मोनू (मोना) गुड्डू जी के साथ आती-जाती रही है, तो अपनी आँख खोलकर ही चलती होगी। इसको पता होगा दिल्ली कैसे जाना है,” और हँसने लगी। फिर मेरे भाई ने मुझसे कहा, “ठीक है, जाओ, क्या कर सकते हैं।” उसने मेरी टिकट करा दी। मैं अकेली निकल गई, अपना विश्वास लेकर और भगवान जी को लेकर। फिर मैं आ गई, और अंकल ने मुझे जॉब लगवा दिया। मैंने सबसे पहले एक्सपोर्ट कंपनी में जॉब की, पर मैं वहाँ नहीं कर पाई। 3-4 दिन में छोड़ दिया, हो ही नहीं पाया। मेरा पैर इतना सूज गया कि मैं खड़ी नहीं हो पा रही थी। फिर मैंने दूसरी जॉब अप्लाई की, तब मेरा जॉब JNS कंपनी में लगा। वहाँ मैंने ठीक से जॉब की। वहाँ भी थोड़ा-बहुत देखकर हुआ, लेकिन धीरे-धीरे सब ठीक हो गया, आदत हो गई और करने लगी। मैं अकेली ही रहती थी। कुछ महीने बाद मेरे पास मेरे पति और मेरे ससुर आ गए, मेरे रूम पर। उन्होंने मेरी बेइज़्ज़ती करने लगे—कि ये ऐसी है, गंदी है, और भी बुरा-बुरा बोलने लगे। मैं बहुत बेबस होकर सब सुन रही थी। कहा भी गया है न, कि किसी लेडी को तोड़ना हो तो उस पर गंदा इल्ज़ाम लगा दो, क्योंकि वो कोई सबूत नहीं दे सकती। दुनिया भी नहीं मानती कि “अकेली रहती है, तो किसी के साथ कुछ न कुछ होगा,” ऐसे कैसे अकेली रह लेगी। और मेरी उम्र भी कम थी, तो वो कुछ भी बोल देते। फिर मेरा मकानमालिक आया और बोला, “आप ऐसा नहीं बोल सकते, ये आपकी बहू है।” पर मेरे ससुर बोले, “नहीं, ये बहुत बेकार है, ऐसी है, वैसी है,” बहुत गंदा-गंदा। तो मकानमालिक ने कहा, “आप बेकार हो, ये नहीं। ये बस अपना जॉब करती है, और कुछ नहीं। मैं भी देख रहा हूँ। मैं अकेली लेडी को जल्दी रूम नहीं देता, पर इन्हें दिया क्योंकि ये देखने में शरीफ़ लगती हैं। हम लोग रूम लगाते हैं, तो हमको पता होता है सब। इसलिए आप चुप हो जाओ और यहाँ से जाओ, इन्हें रहने दो।” फिर रात हुई, और मेरे ससुर मेरे पति से बोले कि “देखो, मकानमालिक भी इसे अच्छा बोल रहा है,” इसी बात पर मेरे पति ने इतनी ज़ोर से मुझे थप्पड़ मारा कि क्या बताऊँ। फिर भी मैंने सहन किया, क्योंकि आसपास कोई नहीं जानता था। फिर सुबह हुई, मैं खाना बनाकर जॉब पर चली गई—मेरी कंपनी की गाड़ी 8 बजे आती थी, तो मैं चली गई। मेरे पति और मेरे ससुर मेरे कंपनी के गेट पर आए, और पता करने लगे कि “इसमें कितने लड़के काम करते हैं?” गार्ड ने मुझे बताया कि “आपके घर से कोई आया था, पूछ रहा था कि यहाँ कितने लड़के काम करते हैं?” तो मैंने बताया कि “बहुत सारे हैं, कोई गिनती तो नहीं, लड़कियाँ भी काम करती हैं।” फिर वो लोग चले गए, बोले, “तुम नहीं जाओगी।” मैंने कहा, “नहीं, मैं मरना पसंद करूँगी, पर घर नहीं जा सकती।”
Saturday, January 18, 2025
मोना की कहानी (अध्याय 17)
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Mona Singh
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