और वो ये भी बोली कि “जॉब करूँ या न करूँ, मुझे तो आपकी ज़रूरत है ही, पर जॉब करना भी मुझे ज़रूरी है। अगर जॉब करूँगी तो पैसे भी दूँगी।” मैंने कहा, “ठीक है दीदी, आप कर लेना।” तो वो बोली, “पहले हो तो जाए। मैं बोली, ‘दीदी, पक्का हो जाएगा,’ और कुछ दिन बाद वाकई हो गया उनका। फिर दीदी ने बुलाया, “दीदी, मेरा वहाँ हो गया, पर मुझे ऑफ़िस रोज़ जाना होगा। अगर आप बोलो तो मैं जॉइनिंग करूँ, नहीं तो नहीं करूँगी। आप मुझे धोखा मत देना।” ये सब बोलकर दीदी रोने लगीं। मैं भी बहुत इमोशनल हूँ, तो मैंने कहा, “दीदी, कर लो। मैं सब संभालूँगी, आप आराम से ऑफ़िस जाओ, टेंशन मत लो।” फिर दीदी रोज़ ऑफ़िस जाने लगीं, कभी मैं छुट्टी नहीं लेती बीच में। अगर कभी लेती भी तो शनिवार को ही, वरना कभी नहीं—चाहे मुझे कोई भी देखने आए। बीच में छुट्टी लेने का सवाल ही नहीं था। ऐसे-ऐसे करते अब बेबी 4 साल की हो गई। कई बार मेरे वहाँ पर किसी मामूली मुद्दे को लेकर बहस भी हुई, पर 2-3 दिन में सब ठीक हो जाता था, और मैं फिर रहती थी। इस बार ऐसा हुआ कि मेरे ससुराल में मेरे चाचा-ससुर के साथ कुछ हादसा हुआ और उनका देहांत हो गया। मुझे फ़ोन आया, तो मैंने दीदी को बताया, “दीदी, ऐसा हुआ है, मुझे 2 दिन की छुट्टी दे दो, और मैं शनिवार को ही निकल जाऊँगी, 10 दिन में लौट आऊँगी।” पर वो मुझ पर इतना चिल्लाई जैसे मैंने कुछ बहुत बड़ा कर दिया हो। उल्टा-सीधा बोलने लगीं। तब मैंने कहा, “मैं तो जाऊँगी, चाहे जॉब रहे या न रहे।” तब वो बोलीं, “ठीक है, अभी जाओ, अभी जाओ,” मुझे बहुत बुरा लगा और मैं निकल गई। जब निकली तो मेरा कुछ सामान था, वो भी मुझे दे दिया, “लेती जाओ।” तो मैं क्या करती, लेकर आ गई। 10 दिन घर रही, फिर वापस आ गई। आने के बाद जॉब ढूँढना शुरू किया, पर अभी तक मिला नहीं। अब मेरे पास बस 3 जगह की कुकिंग है। बाक़ी समय मैं रूम पर ही रहती हूँ। फिर भी टेंशन हो रही है कि क्या करूँ, क्या न करूँ, बेकार लग रहा है। फिर सब भगवान पर छोड़ दिया कि जो उनकी मर्ज़ी।
Friday, January 17, 2025
मोना की कहानी (अध्याय 16)
Index of Journals
Labels:
Journal
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment