फिर बहुत मुश्किल से घर पर पब्लिक भी आई, मेरे ससुर एक भी मेरा इज़्ज़त नहीं छोड़े। जितना गलत बोलना है सब बोले ताकि मेरे ऊपर गंदा इल्ज़ाम लगाकर मुझे कुछ न दें। और बोले कि मैं सारा ख़र्च उठा रहा हूँ, दरोगा जी ये लेडीज़ बहुत गंदी है, ये सब बेच के हरियाणा भाग जाएगी। और भी बहुत बुरा बुरा बोले, ऐसा कोई भी मिस वर्ड बाकी नहीं था। और पूरे गाँव के सामने मेरे ही ससुर मुझे गलत साबित करने का खूब कोशिश किए। और मैं वहाँ सबके सामने अपना अपने बच्चों का भविष्य का भीख माँग रही थी। मुझे तब ऐसा पहली बार लगा कि मैं लड़की क्यों हूँ? क्या लड़की होना ही गुनाह है? मेरे पापा मम्मी ऐसे घर में डाल दिए, तब भी मैं मजबूर थी और आज मैं एक बहू हूँ तो भी मैं मजबूर हूँ। अगर मैं बेटा होती तो मुझे खुशी से मेरा हिस्सा मिलता क्योंकि मैं बहू हूँ, बहू का कोई हिस्सा ही नहीं है। फिर मेरे पति को मिला, लोग बोले कि बहू को हिस्सा नहीं मिलता, बेटा को मिलता है। तो मैं फिर अपने पति को राजी की क्योंकि मेरा पति तो पागल है, वो तो बोल देगा कि मैं मम्मी पापा साथ रहेंगे तो मुझे हिसाब नहीं मिल पाता। फिर मैं अपने पति को समझाई और बोली कि आपको बस थोड़ा सा बोलना है, और कुछ नहीं। बाकी जो भी होगा खेती से वो सब आपको ही दे दूंगी, बस आप बोल दो कि हाँ चाहिए क्योंकि मेरे परिवार वालों को पता था कि गुड्डू नहीं बोलेगा। लेकिन मैं सब समझा कर बुलवा दी और ये एक बार पब्लिक को बोल दिए कि गुड्डू तुम चाहते हो कि अलग हो जाए तो ये भगवान के कृपा से हाँ बोल दिए। बस उनको हाँ ही बोलना था, बोलने के बाद सब चौंक गए तो दरोगा जी जो थे वो बोले कि आपका बेटा का भी मन है तो आप देर मत करो, दे दो नहीं तो हमसे बुरा कोई नहीं है। फिर मुझे 2 बीघा मिला और बाकी पापा और देवर का है, और थोड़ा जमीन ज्वाइंट है जिसमें खाने का धान होता है, जिसमें मुझे बस 50 किलो चावल मिलता है। कितना होता है नहीं होता है मुझे कोई हिसाब नहीं मिलता फिर भी मैं मान ली चलो बाकी मैं काम कर लेती हूँ जहाँ कुछ नहीं मिल रहा था वहाँ कुछ तो मिला। लेकिन जब मैं जमीन माँगी थी तब जुलाई था और जैसे ही जमीन मिला मेरा खाना और सब कुछ बंद हो गया। वहाँ पर एक ग्लास पानी भी नहीं था मेरा और मैं घर पर जाती तो गैस भी नहीं छुना था और ना ही कोई चीज को हाथ लगा सकते। तब मेरे ससुर सास बोलते कि ये सब कुछ बबलू का है तुम अपना जमीन लेकर अलग हो गई हो अब कुछ नहीं है। तब मेरे पर दुख का पहाड़ हो गया कि अब कैसे करूँ क्या करूँ, 4 लोग हैं खाने वाले। फिर मैं बस एक पाव दूध लेती थी रात को और बस रोटी बनाती थी और हम चारों उस दूध से 2-2 रोटी कैसे भी खा लेते। और दिन में रोज चीला बनाती और बच्चों को वही टिफिन देती और पूरा दिन में यही चलता चीला दिन में और रात में दूध रोटी। एक पाव दूध में एक पाव पानी डालते थे और उसको बस मीठा कर देते थे और बच्चों को कभी-कभी मीठी रोटी बना देते। मेरी बड़ी बेटी को मीठा बिल्कुल पसंद नहीं था लेकिन मैं बोलती बेटा बस थोड़ा दिन का बात है मैं सब ठीक कर दूंगी। धीरे-धीरे दिन बीत गया और मैं खेती कराई और जिसके लिए मैंने पैसा लिया 10000, 4 अपना बहन से और 6 अपना भाई से। बस मैं इतना में ही खेती कराई मेरी दीदी बोली "मोना खेती मत करो तुम खेती का कुछ नहीं जानती तो कैसे करोगी"। मैं बोली भगवान करेंगे और मैं अपने गाँव में रहकर खेती की और मेरे बगल में एक हैं, उनसे पूछ-पूछ कर करती कि कहाँ कितना लगेगा। और खेती हो गया, खेती बहुत अच्छा हुआ जितना होना नहीं चाहिए था उतना हो गया
Tuesday, January 21, 2025
मोना की कहानी (अध्याय 19)
See All Posts on Mona
Labels:
Mona Singh
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment