मैं बहुत काम करती हूँ, पर कभी झुककर नहीं रहती। पता नहीं क्यों, मेरी सोच है कि काम अच्छा करो और ईमानदारी से करो, पर झुककर या किसी के पैर पर गिरकर काम नहीं कर सकती। आज 15 साल हो गए काम करते, पर कहीं भी मैं झुकी नहीं। हाँ, जो बड़े पोस्ट पर हैं, कंपनी में, उनकी इज़्ज़त करती हूँ, बस। पर अगर वो कुछ ग़लत बोलते हैं, तो मैं नहीं सुन सकती। मेरे अंदर जो एक कमी है, वो ये है कि मुझे बहुत गुस्सा आता है। पहले मैं पैकिंग का काम करती थी, फिर काउल्टी (पशुओं से जुड़ी) वाली कंपनी में क़रीब 5 साल जॉब की। उसके बाद मैं अपने मायके चली गई। मायके में मेरी माँ का सपोर्ट तो नहीं मिला, पर मेरी भाभी ने मेरा साथ दिया और मैं एक साल वहाँ रही। वहाँ रहते हुए भी मैं जॉब करना चाहती थी, क्योंकि मेरे भाई की आमदनी बहुत ज़्यादा नहीं थी और परिवार बड़ा हो गया था—हम तीन (मैं, मेरी बेटी, मेरी माँ) और मेरे पापा, भाई, भाभी और एक भतीजा। मैं रह तो रही थी, पर काम भी खोजना चाहती थी। उस समय मेरी भाभी ने मेरा बहुत साथ दिया—मेरे जॉब खोजने में भी मदद की। पर मेरी माँ मुझे बहुत परेशान करती थी। मैं अपनी भाभी से ठीक से बात तक नहीं कर पाती, न ही मेरी भाभी कुछ कर पातीं। पता नहीं मेरी माँ को क्या हो गया था। माँ तो माँ होती है, हो सकता है उनके दिमाग़ में कुछ चलता हो उस वक़्त। पर उस समय मेरी भाभी ने मुझे सपोर्ट दिया, हम दोनों ने साथ में बहुत अच्छा वक़्त गुज़ारा। एक साल में कभी भी हमारे बीच कोई लड़ाई-झगड़ा नहीं हुआ। मैं जॉब की तलाश में जहाँ जाती, मेरी भाभी मेरे साथ जाती थीं—मुझे अकेले नहीं छोड़ती थीं। मैं अख़बार में काम देखती, भाभी को बताती। हमारे घर में रोज़ अख़बार आता था, और मैं रोज़ काम के लिए वहाँ देखती थी। इस तरह एक दिन काम भी मिल गया। तब मैं बीकानेर में थी, उसी समय मेरा भाई भी बीकानेर में ही था। उसका ऑफिस दूर था—वो सुबह क़रीब 7 बजे निकलता था—तो मैं ही सारा नाश्ता बनाती थी। मेरी भाभी उस वक़्त पढ़ाई करती थीं, तो मैं उनकी मदद करती थी ताकि वो पढ़ सकें। सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था; मुझे वहाँ अच्छा लगा, मेरी जॉब भी लग गई, सब ठीक था। फिर मैं देहरी आ गई, और वहाँ आकर घर गई। मैंने अपनी ससुरालवालों से अपने हिस्से की ज़मीन माँगी, पर उन्होंने मना कर दिया, बोले कि “नहीं, मैं अपनी ज़िंदगी में बिलकुल नहीं दे सकता।” फिर क्या, मैं पब्लिक ऑफ़िस में (शायद कोई सार्वजनिक शिकायत दफ़्तर या लोक-अदालत) शिकायत करने चली गई और वहाँ सारी बात बताई कि “ये सब है, मुझे अपना हिस्सा चाहिए।” सब लोग मेरे ख़िलाफ़ हो गए—मेरे चाचा-ससुर समेत सब। वो दिन बहुत बुरा था—जैसे पूरी दुनिया एक तरफ़ थी, और मैं अकेली दूसरी तरफ़। जब मैंने शिकायत की, तो वहाँ मेरे ससुर आए और बोले कि “नहीं, ये झूठ बोल रही है। हम सब कुछ करते हैं, दोनों बच्चों की पढ़ाई का ख़र्च भी देते हैं। देहरी में पढ़ते हैं ये। हिस्सा पाने के लिए ये सब कर रही है।” और मुझे कमज़ोर करने के लिए उन्होंने मुझ पर भी इलज़ाम लगाया कि मैं ठीक नहीं हूँ, हरियाणा में रहती हूँ, और किसी के साथ रहती हूँ। जब ये बात सबके सामने बोले तो मैं इतनी कमज़ोर और बेबस थी कि क्या बताऊँ। फिर भी और बहुत कुछ बोले—क्या बताऊँ। मुझे अपने ससुर से उसी दिन से नफ़रत हो गई। पहले मैं अपनी सास-ससुर से बहुत प्यार करती थी, पर वो दिन मैं कभी नहीं भूलती जब उन्होंने मुझ पर इतने गंदे-गंदे इलज़ाम लगाए। ऐसे लोगों को तो कभी अपना मुँह भी न दिखाती, पर क्या करूँ—इग्नोर करके चली जाती हूँ। मेरा ससुराल का माहौल बहुत ही गंदा है—मेरे पति से ज़्यादा मेरा परिवार ही गंदा है।
Pages
- Index of Lessons in Technology
- Index of Book Summaries
- Index of Book Lists And Downloads
- Index For Job Interviews Preparation
- Index of "Algorithms: Design and Analysis"
- Python Course (Index)
- Data Analytics Course (Index)
- Index of Machine Learning
- Postings Index
- Index of BITS WILP Exam Papers and Content
- Lessons in Investing
- Index of Math Lessons
- Downloads
- Index of Management Lessons
- Book Requests
- Index of English Lessons
- Index of Medicines
- Index of Quizzes (Educational)
Wednesday, January 15, 2025
मोना की कहानी (अध्याय 12)
See All Posts on Mona
Labels:
Mona Singh
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment