Wednesday, January 8, 2025

मोना की कहानी (अध्याय 4)

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Note: "कुछ जगह पर जहाँ मोना अपने ऑफिस के लोगों से बात कर रही है, वहाँ मोना के लिए 'डॉली' नाम का इस्तेमाल किया हुआ है, क्योंकि मोना ने ऑफिस में डॉली (अपनी छोटी बहन) के दस्तावेज़ लगाए थे।"
    
फिर एक दिन ऐसे हुआ कि मेरे बच्चों का स्कूल फी नहीं दे पा रही थी और मैं सब से पैसा माँगी 500, लेकिन किसी ने नहीं दिया। फिर मैंने एक दीदी की लड़की से माँगा, वो बोली, “हाँ मासी, मैं दे दूँगी आपको 500।” तो मैं बोली, “चलो ठीक है, तुम 5 दिन के लिए दे दो, फिर मैं वापस कर दूँगी।” मेरी भाभी के पास मेरा पैसा बाकी था, वो टाइम दिया है 5 दिन का, तब तक तुमसे ले लो, नहीं तो स्कूल वाले पेपर नहीं देने देंगे। मेरे बच्चों का हाफ़-ईयरली पेपर था, तो इसीलिए मेरा काम कर दो। और मैं उस दिन बहुत रोई भी थी, क्योंकि मुझे अपनी दीदी की लड़की से पैसा माँगना पड़ा। पर करूँ भी तो क्या, मजबूरी थी। फिर उसने हाँ बोली और 5 तारीख का टाइम ले लिया। फिर 5 दिन बाद मैंने कॉल की, तब उसने मेरा नंबर ब्लॉकलिस्ट में डाल दिया और नंबर भी बिज़ी जाने लगा। अब क्या करूँ, धोखा दे दिया। अब ऐसा हाल हुआ कि क्या बताऊँ। फिर मैंने 500 रुपये किसी और से सूद पर लिए और स्कूल में जमा किए। जब मेरे बच्चे का पेपर ख़त्म हुआ, तो मैंने ये सोच लिया कि बाहर कमाना पड़ेगा। और अब मैं बाहर जाने का मूड बना ली। फिर क्या, मैं अपने पति के साथ निकल गई हरियाणा। और जैसे ही ट्रेन में बैठी, मेरा पर्स चोरी हो गया। अब क्या, सारा पैसा उसी में था, और एटीएम भी, और आधार कार्ड भी, मतलब सब कुछ। अब तो न कुछ खाने का था और न ही एक भी रुपया। मेरे पति के पास भी कुछ नहीं था, सब उसी में था। फिर दिल्ली पहुँचे और जिस अंकल के पास मैं जा रही थी, उनको कॉल करके सारा बात बताई। वो बोले, “कोई बात नहीं, तुम कैब से आ जाओ, मैं पैसा दे दूँगा।” फिर मैंने कैब बुकिंग की और आ गई मानेसर में उनके रूम पर। फिर एक-दो दिन रेस्ट की और जॉब ढूँढना शुरू किया। और जिनके पास आई थी, उनसे भी बोली कि लगवा दीजिए साहब का। अब तो वो रोज़ साहब का काम नाइट में लगवाते और मैं साहब को नाइट से मना कर देती। वो आदमी के मन में कुछ चलने लगा, शायद। हम बोले कि मानते हैं कि नाइट चलता है, पर रूम अभी एक है, तो 7 दिन पहले डे लगवा दो। तो बोल रहे हैं कि “मेरे बस में नहीं है।” इसका मतलब, अब मैं थोड़ा समझने लगी थी कि वो ग़लत नज़र से देख रहा है।

फिर एक दिन वो आदमी सीरियस होकर बोला, “नहीं, नाइट करने दोगी तो ठीक, वरना जाओ अपना रास्ता देख लो।” मैं बोली, “ठीक है, नो प्रॉब्लम, मैं जा रही हूँ।” और मैं पहले वहीं रहती थी, तो मुझे जान-पहचान था कोई मकान मालिक, तो मैं जाकर बात की और सारा बताई कि ये ऐसी बात है, पैसा नहीं है, जॉब अभी नहीं कहीं लगा है, जब लगेगा तो ही पैसा देंगे। वो बोले, “कोई बात नहीं, ले लो सेपरेट रूम।” मैंने ले लिया और उनके रूम से आ गई। उसके बाद भी कोई जॉब नहीं लगा और घर भी नहीं जा सकते। किसी हाल में मैं घर नहीं जा सकती थी, क्योंकि मेरा काम करना अर्जेंट था। फिर मैंने सोचा, जब तक जॉब नहीं मिलता, मैं मज़दूरी कर लूँगी, पर घर नहीं जा सकती। तो मानेसर में एक चौक है, वहाँ पे सुबह सारे मज़दूर जाकर खड़े हो जाते हैं और वहीं से उनको मज़दूरी मिलती है, जिसको जो चाहिए। तो मैं भी वहीं जाकर मज़दूरी की लाइन में खड़ी हो गई। कुछ लोग आए और सबको ले गए, और हम लोगों को कोई नहीं ले गया, बोले, “नहीं, आप लोगों से नहीं होगा।” अब क्या, 9 बजे तक सब चले गए और हम लोग दोना रह गए। मैं रोकर आ गई रूम पर और मेरे पास कुछ नहीं था, बस भगवान का भरोसा था। जिस मकान में रूम लिया था, उसमें एक गैस थी और एक छोटा सिलिंडर, एक तवा, बेलन, चकला और एक ग्लास। बस यही बर्तन था। तो फिर मैं दुकान में गई, और वो दुकान मकान मालिक की ही थी, उससे उधार आटा लाई और लाकर बस रोटी बनाई। और मानेसर में 10-20 रुपये की सब्ज़ी मिल जाती है, मैं तो 10 की सब्ज़ी और 10 का दूध लाई। सब्ज़ी-रोटी खाई और दूध पीकर सो गई। दूध मेरा फ़ेवरेट है। मैंने अपनी भाभी से 500 रुपये मँगवाए थे, उससे थोड़ा काम चला।

फिर एक दिन मैंने अपने पति को भेजा, “आप जाओ चौक पे, आपको मिल जाएगा शायद। तो आप मुझे फोन कर देना, मैं आ जाऊँगी।” फिर ऐसे हुआ, उनको काम मिला और मुझे कॉल करके बोले, “आ जाओ।” मैं भागकर आई काम के लिए। और काम पर जाने लगी, तो जो ले जा रहा था, वो मुझे बोला, “मेडम, आप मत जाओ, वो आपके लायक काम नहीं है।” मैं बोली, “भैया, जाने दो ना, मैं कर लूँगी। नहीं कर पाऊँगी तो हटा देना।” मैंने बहुत रिक्वेस्ट की, तो मान गया और ले गया। काम जो था, वो बहुत मुश्किल था। स्कूल में काम था, 3 मंज़िल बन रही थी, जिसमें ईंटा ऊपर रस्सी से खींचकर चढ़ाना था। मैं देखकर डर गई, “ये कैसा काम है, कैसे होगा?” पर मैंने अपनी हिम्मत नहीं हारी। बिना कुछ खाए, मैंने ईंटा धोने का काम शुरू कर दिया। मेरे पति और मैं, और दो लोग और थे जो मज़दूर ही थे। उनको तो आदत थी रोज़ की। और बारी-बारी से ये करना था—एक-दो लोग तो ईंटा देते, लाकर दूसरा ईंटे को बाँधता और दो लोग खींचते। भगवन का नाम लेकर काम करना है तो करना है, मैं सोच ली थी। ईंट तो मैं बाँध नहीं पाती, मुझे नहीं आ रहा था, तो मैं बोली, “मैं खींच दूँगी।” और हम दोनों ईंटा खींचने लगे। भगवान जी को बोल दिया, “सहारा देना,” बस शुरू हो गई मेरी दिनचर्या।

फिर 1 बजे तक काम किया और लंच हो गया। पैसा तो था नहीं, जहाँ काम किए थे, उसने खाने के लिए 100 रुपये दिए और हम दोनों लंच कर लिए। लंच 2 घंटे का होता है। फिर खाना खाकर थोड़ा देर रेस्ट किए और फिर काम पर लग गए। 5:30 पे छुट्टी हो गई और पैसे मिले 700 रुपये। 100 रुपये काट लिए खाने के, 700 लेकर घर गए। रास्ते में एक बाल्टी, एक मग, एक कंघी और एक शीशा लिया जो नहीं था, और एक प्लेट। इतना सामान लिया और 20 रुपये की बनी हुई सब्ज़ी, क्योंकि घर पर सामान नहीं था, तो बनी हुई सब्ज़ी ही ठीक था खाने को। बाहर मिल जाता था। रोटी गर्म बना ली। फिर आते-आते 8 बज गए। आने के बाद नहाए, क्योंकि मज़दूरी करके आए थे, मिट्टी-धूल-धूप में पूरा दिन थे। आके नहाए, नहा के रोटी बनाई, खाई और सो गए। और सुबह फिर से काम पर जाना था। फिर जल्दी जागकर नहा के निकल गए, क्योंकि फिर से काम ढूँढना था। कंपनी तो थी नहीं कि 8 बजे या कोई टाइम पर जाना था। वहाँ तो चौक पर रोज़ जाओ, काम मिला तो ठीक, नहीं तो ऐसे ही।

फिर सुबह गए तो काम मिल गया, वही स्कूल में ईंट वाला ही। 3-4 दिन तो उसी स्कूल में काम मिला और रोज़ ऐसे करते—100 खाते, 700 बचते। तो 5 दिन में स्कूल में काम से जमा हो गया 3500। जमा होने के बाद पहले किराया दिया 2000, एडवांस जाता है ना, तो वो दे दिया। फिर 5 दिन बाद मुझे काम मिला मंदिर में सफ़ाई का—कोई पूजा थी, उसके लिए अच्छे से सफ़ाई करना था। मंदिर काफ़ी बड़ा था, तो 6-7 दिन सफ़ाई करनी थी। तो दोनों हम लोग काम किए वहाँ 7 दिन और पैसे मिले 4900, दोनों को कुल। काम वहाँ और भी था, पर थोड़ा मुझे अच्छा नहीं लगता था, मेहनत भी ज़्यादा थी, कर नहीं पा रहे थे। वो मजबूरी जो ना कराए... और अब तो मेरे पास पैसा हो गया था, दो दिन में मैं जॉब ढूँढ लूँ अपनी। तो मैं गई दूध-आइसक्रीम कंपनी और वहाँ जॉइनिंग कर ली। और “साहब” मेरे पति को मैं बोलती हूँ, वो काम नहीं करना चाहते हैं, इसलिए उनका नाम मैं साहब रख दी हूँ।

अब मैं कंपनी जाने लगी और मेरे साहब तो काम करना ही नहीं चाहते, और वो घर में रहने लगे। मैं बोलती, “जाएँ, काम कर लें कहीं, खोज लें,” तो बोलते, “नहीं, मैं घर जाऊँगा, अब मैं काम नहीं करूँगा, तुम जबरदस्ती ले आई हो और जबरदस्ती काम करा रही हो। तुम काम करो, मैं घर जाऊँगा।” फिर मैंने सोचा, “चलो, मैं काम खोज दूँ इनके लिए।” मैंने अपनी ही कंपनी में काम लगवा दिया, पर ये काम ही न करें, भाग जाएँ। मुझे फोन आया कि “ये आदमी काम नहीं करना चाहता, बार-बार बाथरूम जा रहा है, बताओ क्या करना है? ऐसे कैसे होगा डॉली, बताओ?” मैंने कहा, “छोड़ दो।” फिर इनको कहीं काम नहीं मिला और न ही मज़दूरी, क्योंकि इनका मन ही नहीं है काम करने का। इसमें कोई क्या करे। ऐसे-ऐसे 2 महीने बीत गए, मैं काम करती रही और ये कहीं न करें, सब जगह से भाग आते।

फिर मेरे बगल में एक आँटी थी, वो मुझसे बोली, “तुम्हारे पति घर में हैं? काम नहीं मिला आज तक?” मैं क्या बोलूँ। सच के लिए मैंने बोला, “नहीं आँटी, नहीं मिल रहा है, क्या करूँ?” आँटी बोली, “कोई बात नहीं बेटा, मेरे जान-पहचान का है, मैं तेरी बात करा देती हूँ।” वो मेरी बात करा दी, फोन लगाकर मुझे दे दी उस आदमी से। मैंने उसे सच्ची बात बता दी, “भइया, आप लगवा तो दोगे, पर ये कर नहीं पाएँगे।” तो वो और ज़्यादा बात करने लगा, और बात करते-करते 3 घंटे हो गए, पता भी नहीं चला कि मैंने क्या बात की और क्या नहीं। मैंने सब बता दिया, “ये काम ही नहीं कर पा रहे हैं, आप कैसे करोगे?” और मैंने बोला, “आपको मैं जानती भी नहीं हूँ।” तो बोला, “कोई बात नहीं, कोई किसी को नहीं जानता, जानते-जानते ही जान जाओगे।” और वो बोला, “मैं आपके पति को जॉब पर लगवा देता हूँ अपने पास, मुझे कोई दिक्कत नहीं होगा।” मैं बोली, “देख लो, कर तो लेंगे, पर 15 दिन ज़्यादा से ज़्यादा करेंगे।” वो बोला, “नहीं, मैं अच्छी पोस्ट पर लगाऊँगा और पैसे भी अच्छे दूँगा।” मैं बोली, “ठीक है।” फिर मैंने बोला, “मैं अपना जॉब यहाँ का नहीं छोड़ सकती।” तो बोला, “ठीक है, तुम वहीं रहो, इनको मैं किसी के साथ शिफ़्ट करा दूँगा, जब ये ठीक जाएँगे तब आना।” मैं बोली, “ठीक है।” और वो बोला, “तुम्हारा एक भी पैसा नहीं लगेगा, मैं लेने आ रहा हूँ।” और वो लेने आ गया संडे को, और संडे को ही लेकर चला गया। और मंडे को जॉब लगवा दिया उसनें, जो बोला वही किया।

फिर उससे भी मेरी थोड़ी-थोड़ी बात होने लगी, क्योंकि मेरे पति के पास फोन नहीं था, तो उसी के फोन पर बात होता था। फिर ऐसे ही एक महीना बीत गया, और वो मुझे बोला, “अब तो इसकी फ़र्स्ट सैलरी आ गई, अब तुम भी आ जाओ, तुम्हारी भी यही लग जाएगी।” मैं बोली, “ठीक है।” और मेरे पति भी बार-बार फोन करने लगे, “कि आ जाओ, दिक्कत हो रहा है खाना बनाने में।” फिर मैं जयपुर चली गई। मेरे साहब का वहीं पर जॉब लग गया था ओमैक्स कंपनी में, क्वॉलिटी में लगा, सैलरी 20000 दिलाई थी उस आदमी ने, सब से ज़्यादा सैलरी लगवा दी थी, क्योंकि सैलरी वही आदमी के हाथ में थी। ऐसे ही फिर मैं जयपुर गई, वहाँ जॉब मेरी भी लगी, मैं भी करने लगी। मेरी सैलरी कम थी वहाँ, क्योंकि मेरे कुछ डॉक्यूमेंट कम थे, इसलिए। पर कोई बात नहीं, दोनों कमा तो रहे हैं ना।

ऐसे ही बहुत अच्छा से बीता कुछ महीना। और मेरे साहब... अब फिर से घर जाने की जिद करने लगे। मई टाइम था। मैं बोली, “कुछ महीना और रुक जाओ, फिर सर से आपकी छुट्टी पास करा दूँगी, अभी तो 3 महीने ही हुआ है। वो बोले हैं कि 6 महीने कर लेंगे तो छुट्टी मैं करा पाऊँगा।” पर मेरे साहब को कोई मजबूरी नहीं, बस जाना है तो जाना है। जॉब तो जैसे-तैसे 3 महीने किए, बहुत छुट्टी करके लिए, पर वो सब मैनेज कर रहे थे कि कोई बात नहीं, “मैं सब ठीक कर दूँगा, कैसे भी इसको मन लग जाए।” बस मैं यही सोच रही हूँ। “मोना, तुम अच्छे से यहाँ रहो, मैं हेल्प करूँगा।” बात ये थी कि वो आदमी भी मुझे पसंद करने लगा मन ही मन, पर मैं बोलती नहीं, “ये सब मेरे लिस्ट में नहीं है, मैं पहले से परेशान रहती हूँ और अब ये सब नहीं। तुमको मेरा हेल्प करना है, करो, नहीं करना है मत करो, बात ख़त्म, ओके?” तो वो बोला, “यार, ऐसी कोई बात नहीं है, तुम ग़लत मत लो, मेरी अच्छी दोस्त तो बन सकती हो ना।” मैं बोली, “ठीक है, ना दोस्त, ना दुश्मन, ऐसे ही ठीक है।” तो वो हँसा, बोला, “जैसे तुम्हारी मर्ज़ी, पर तुम बहुत अच्छी हो।”

फिर मेरा पति एक दिन ऐसा मुझे मजबूर किया कि उसका टिकट करा के मुझे भेजना पड़ा कंपनी में। बॉउंड्री कूदके पता नहीं कैसे आ गया रूम पर। फिर मेरे पास सर का कॉल आया, “बोलो, मदनजीत कहाँ है?” मैंने बोला, “मैं तो कंपनी में हूँ, कैसे बताऊँ?” फिर मैं गेट पास लेकर गई, तो वो रूम पर थे। मैं फोन करके बोली, “वो तो रूम पर हैं।” फिर वो जो किए थे, उससे पता नहीं क्या होता, पर भगवान बचा लिए। वो कूदकर भागे थे, इसका कोई सबूत नहीं मिल पाया, क्योंकि कैमरा में नहीं केच हुआ, तो बात संभल गई। और सर बोले कि “मैं चिट्ठी दिया था, भूल गया था।” उसके बाद वो सर बोले, “अब यहाँ जॉब मैं नहीं लगवा पाऊँगा, बहुत बड़ा काम कर दिया है इसने।” फिर मैं बोली, “चलो, आप ऐसे ही रहो, घर जाकर क्या करोगे, यहीं रहो मेरे साथ।” पर नहीं, वो कैसे तरह, 10 दिन रहे और मारपीट करने लगे घर जाने के लिए। फिर मैं मजबूरी में भेज दी, “रहेंगे नहीं तो क्या करूँ, जाओ।” मेरी शादी की सालगिरह थी, मैं बोली “मना लो, फिर जाना,” नहीं, “मुझे तो जाना ही है,” मैंने चला गया। फिर मैंने तात्कालिक टिकट करा के भेज दिया। और अब 5 साल हो गए, मैं कभी भी जॉब नहीं लगवा सकती, क्योंकि ऐसे-ऐसे काम कर देते हैं कि भगवान जी बचा सकते हैं। पहले मैं हमेशा भूल जाती थी कि “चलो, फिर एक बार और लगवा के देखते हैं,” पर अब जब से ये किए, तब से हिम्मत करके फिर याद आता कि “नहीं भाई, भगवान कितना बचाएँगे, नहीं, अब नहीं, ऐसे ही ठीक है।” तब से आज तक मैंने कहीं भी जॉब की बात नहीं की। हालाँकि वो बहुत बोलते हैं, “कहीं लगवा दो, एक बार भरोसा और कर लो।” मैं कभी-कभी सोचती हूँ कि लगा दूँ कहीं, गारमेंट में कुछ, पर फिर याद आती कि “नहीं, इनको काम में मन नहीं लगता, कहीं कोई परेशानी न आ जाए।” सच बात तो ये है कि मेरे पति के कारण कितनी दुविधा हो जाती है काम की बात करते-करते, फिर उनकी जॉब की पैरवी करती, “चलो कोई बात हो तो संभाल लेना,” ये इस टाइप से। थोड़ा काम नहीं कर पाते, तो उनके हिसाब से देख लेना। ऐसे में वो मेरा दोस्त बन जाता, यही होता ना, चाहते भी दोस्ती हो जाती। पर किसी से ज़्यादा दोस्ती नहीं करती, घूमना या कहीं जाना ये नहीं करती। तो मैं सोचती, “चलो, बात करने से क्या ही देखते होंगे।” ऐसे, तब तक मेरे पति ही भाग आते, उनका काम में कोई इंटरेस्ट नहीं है। ऐसे कैसे काम होगा।

तो अब 5 साल से मैं बिलकुल अकेली हूँ और बस जॉब और बच्चों पर ध्यान है, बाक़ी कोई नहीं। फिर मेरा एक जान-पहचान का कोई फ़ेसबुक पर मिला और हाई-हैलो हुआ और वो बोली, “डॉली, मानेसर आ जा, यहाँ मैं काम दिला दूँगी। करना, तुम्हारी पुरानी कंपनी भी खुल गई है।” पहले मैं जिस कंपनी में जॉब करती थी, वो जल गई थी, लाइफलॉग कंपनी थी, जिसमें मैं ऑपरेटर थी, 3 एमएल की सीरिंज बनाती थी मैं। मैं बोली, “ठीक है, आती हूँ।” वैसे मेरी सैलरी 8000 ही थी, इसलिए मैं आना ही सोच ली। वहाँ तो मैं पति के लिए गई थी, अब वो तो भाग ही गए, तो अब 8000 कमा के क्या करूँ। फिर मैं आ गई मानेसर में, आके मैंने जॉब फिर से ट्राई की, पर नहीं लगी कहीं, वेकैंसी नहीं थी। तो नहीं लगी। फिर संधार कंपनी में लगी मेरी जॉब, 12 घंटे की, 16000 सैलरी। 7 से 7 ड्यूटी। मैं लग गई और काम शुरू, काम लगा पैकिंग पे, काम अच्छा लगने लगा, मन भी लगने लगा और सब ठीक चल रहा था। 1 साल बाद फिर मेरी बहन का 25वाँ मैरिज डे आ गया, और वो बोली कि “अच्छे से मनाएँगे, सबको आना है 3 दिन के लिए।” भाई, सब बहन तो हाउसवाइफ़ हैं, उनको क्या दिक्कत। मैं ही दूर थी। मैंने छुट्टी ले के 4 दिन के लिए चली गई बहन के पास, सारा तैयारी की और चली गई। बच्चे भी मेरे गए, पूरा परिवार गया, सब लोग आए पूरे परिवार के साथ, पति बहुत अच्छा था, बहुत मज़ा आया था।

फिर 4 दिन बाद मैं जॉब पर आ गई। आने के बाद ये हुआ कि मेरी कंपनी गुड़गाँव जा रही है, अब यहाँ काम नहीं करना, गुड़गाँव जाओ तो ठीक, नहीं तो दूसरा देखो। अब क्या करें, फिर से परेशान होने लगे, अब कहाँ जाएँ। 6 महीने का टाइम था, कंपनी को बदल लो, सर कंपनी भी दे रहे थे, खोजना नहीं था, पर एक प्रॉब्लम था कि सब 8 घंटे की थी, तो 8 घंटे का पैसा 12 तक लास्ट ही रहता है। इसके चलते ज्वॉइनिंग कर पा रही थी या नहीं... और एक महीना बैठ गई। सोचा, “जब नहीं मिलेगी तो कर लूँगी, तब तक ट्राई करती रहूँ, ट्राई करती जाऊँ,” पर नहीं मिला। फिर एक दिन मेरी फ्रेंड मिली, जो बहुत पुरानी थी। मिली तो उस दिन बस नंबर दे दिया उसको अपना, और वो कॉल की, फिर मिलने आई। तो मैंने उसको सारा बात बताई। तो वो बोली, “एक काम कर, सोसाइटी में कुकिंग कर ले, अच्छा पैसा मिल जाएगा। जितना तुम मेहनत करोगी, उतना मिलेगा।” मैं बोली, “ठीक है, कर लेंगे, मुझे तो पैसे से मतलब है।” वो बोली, “मैं एक कुकिंग दिला दूँगी, बाकी तू खोज लेना।” मैं बोली, “ठीक है, दिला दो।” फिर मैं आ गई सोसाइटी मैप्सको में, और एक कुकिंग ज्वॉइनिंग कर ली। फिर मुझे 3-4 दिन में 3 कुकिंग मिल गई। तो सुबह 6 बजे कुकिंग शुरू होता और 11 बजे तक ख़त्म। तो 11 बजे बहुत धूप होती थी, सोसाइटी में ऑटो नहीं चलता या बहुत कम चलता है, तो कभी-कभी पैदल जाना पड़ता। तो 12 बजे तक रूम पहुँचते, ये सब बहुत दिक्कत होता। फिर 4 या 4:30 बजे निकलना पड़ता शाम का कुकिंग के लिए, और रात के 8 बजे तक जाता। ऐसे ही 2-3 महीने बीत गए। और मैं सोचती, “यार, सोसाइटी में ही 8 घंटे की कोई काम मिल जाता, कुछ तो ठीक रहता।”

फिर मेरे को एक कॉल आया कि एक बच्चे का काम है, करोगी? “हाँ, करोगी तो मिल लो आके, सिर्फ बच्चे को ही देखना है।” तो मैं आई, आके बात की, उनको मैं अच्छी लगी और वो मुझे आने के लिए बोल दिए कि “कल से आ जाओ आप, 9 बजे से 6:30 तक, पैसा 14000।” मैं बोली, “ठीक है।” फिर मैं अब यही रहने लगी, आना-जाना नहीं हो पा रहा था। सुबह में ही नहा-धोके आ जाती, मेरा यहाँ बस नाश्ता ही था, खाना मैं लेके आती थी। फिर मैं कुकिंग और बेबी सिटिंग दोनों करने लगी। फिर एक महीने बाद ही मेरी दीदी के घर जीजा जी का ऐक्सिडेंट हो गया और वो अब नहीं रहे। ये ख़बर मिलते ही मैं भागकर चली गई, सब छोड़कर काम, वहाँ से मैं कैसे आती। मैं 15 दिन वहीं रही, सब मेरा इंतज़ार कर रहे थे। फिर 15 दिन बाद आई, तो सारा काम मेरा बचा हुआ था, किसी ने नहीं लगाया था किसी को। तो मैंने आके फिर से जॉब शुरू कर दी। मेरे पास दो कुकिंग थी और एक जॉब करने लगी आके।

फिर जॉब करते-करते एक दिन जब मैं घर जा रही थी, तो मैंने लिफ़्ट ली एक आदमी से जो कि मैप्सको का ही था। मैं रात में आकर लिफ़्ट से नहीं जाती, पैदल जाती थी, क्योंकि ऑटो नहीं छूटती थी। तो उस दिन जो मैंने लिफ़्ट ली, वो मेरा आख़िरी लिफ़्ट होगा। वो मुझे मेरे चौक तक छोड़ा और बात की, “आप क्या करती हो, कहाँ से आ रही हो?” मैंने सब बताई कि ये काम करती हूँ। तब वो बोले, “मेरी भी कुकिंग कर दोगी?” मैं बोली, “नहीं, मेरे पास टाइम नहीं है।” वो बोला, “ठीक है, एक काम करो, मेरा नंबर ले लो। जब कभी भी टाइम मिले, कॉल कर लेना।” मैं बोली, “ठीक है।” नंबर ले लिया मैंने और रूम पर आ गई। उसके दो दिन बाद जहाँ मैं कुकिंग करती थी, वो भैया से बहस हो गई और मैंने वहाँ छोड़ दिया। बहस इसलिए हुआ कि मैं वहाँ गई, बेल बजाई, कोई गेट नहीं खोला। और वो बोले कि “तुम आई ही नहीं।” तो मैंने सबूत भी दिया कि गेट पर आपका सामान रखा था, वो नहीं माने, बार-बार यही बोल रहे कि “तुम आई नहीं।” फिर मुझे गुस्सा आ गया और मैं बोल दी, “ठीक है, नहीं आई थी, तो अब नहीं आएगी।” तो मैंने छोड़ ही दिया।

उसके 2 दिन बाद मैं जिस आदमी का नंबर ली थी, उसको कॉल की। और मैं बोली, “कब से आऊँ कुकिंग पे?” वो बोले, “जब से मन हो, आ जाओ।” फिर मैं गई कुकिंग करने, तो वहाँ तो कुछ भी नहीं था, सिर्फ़ घर था और कुछ नहीं। मैं बोली, “क्या बनाऊँ, कुछ तो है नहीं।” वो बोले, “सामान तुम ले आओगी?” मैं बोली, “मैं कैसे लाऊँगी, मेरे पास गाड़ी नहीं है। आपके पास, आप ले आओ, कल से मैं आके बनाऊँगी।” तो फिर वो बोले, “क्या तुम मेरे साथ चलोगी, मुझे नहीं पता कि क्या लाऊँ। और मैं नया हूँ यहाँ पर, दुकान का बाज़ार का कुछ नहीं पता।” मैं बोली, “हद्द है, मेरे पास टाइम का प्रॉब्लम है।” फिर मैं सोचने लगी, “कैसे का हेल्प करना चाहिए,” और मुझे तो हेल्प करना पसंद है, टाइम निकालकर कर देती। मैं बोली, “अभी ही चलो, नहीं, अभी एक घंटे में सामान ले आते हैं।” और 8 बजे रात में मानेसर गई, और थोड़ा-बहुत बर्तन ले आई—कुकर, कड़ाही, और जो भी ज़रूरी होता है, एक-दो लाकर रख दिया। उस दिन तो खाना नहीं बना, क्योंकि रात हो गई थी, मुझे रूम पर जाना था। दूसरे दिन से कुकिंग करने लगे।

कुकिंग करते अभी 15 दिन ही हुआ था कि “आशी जैन” बोले फोन करके, “कल से मत आना, मोना।” मैं बोली, “क्यों, क्या हुआ, क्यों नहीं आऊँ?” वो बोले, “ऐसे ही, मत आना।” मैं सोचूँ, “अरे, ऐसा क्या हुआ कि खाना नहीं बनवा रहे।” मैंने बहुत पूछा तो वो बोले, “मेरे पास पैसा नहीं है तुम्हें देने के लिए।” तो मैं बोली, “अगर ये बात है तो मैं बिना पैसे के बना दूँगी, कोई बात नहीं।” मुझे तब बहुत बुरा लगा कि पैसे के चलते मेड को मना करना पड़ रहा है। तो मैं बोली, “अगर पैसे ही प्रॉब्लम है तो मैं बिना पैसे के ही बना दूँगी, अगर कोई और बात है तो बोलिए।” वो बोले, “नहीं मोना, पैसा नहीं है, थोड़ा सा दिक्कत है।” तो मैं बोली, “मैं बना दूँगी, एक टाइम का तो है, मैं मैनेज कर लूँगी, कोई बात नहीं।” तब से मैं क़रीब 2 महीने तक कुकिंग बिना पैसे की ही करती रही। तब वो बोले, “मोना, तुम एक काम करो, यहीं रहो मेरे फ़्लैट में ही, तुम्हारा रूम का किराया बच जाएगा।” मैं बोली, “नहीं, मैं नहीं रह सकती, मैं क्यों रहूँ, तुम अकेले रहते हो, ये काम नहीं करूँगी।” मैं मना कर दी।

ऐसे ही दिन बीत गया। और मेरी दीदी की लड़की का जॉब गुड़गाँव में लगा, तो दीदी की लड़की बोली, “मासी, मेरा गुड़गाँव में ही जॉब लगा है, मैं आपके पास आ रही हूँ।” मैं बोली, “ठीक है, आ जाओ, कोई बात नहीं है।” तो मैंने फिर आशी को बोली सारा बात कि “सानू आ रही है, आपका एड्रेस दे दूँ? क्योंकि मेरा रूम इतना अच्छा नहीं है, इसलिए वो यहाँ अच्छे से रहेगी, जब जाएगी तो जाएगी।” तो बोले, “ठीक है, कोई बात नहीं, दे दो एड्रेस।” और मैंने दे दिया। सानू आ गई और वो रुकी नहीं, एक दिन में ही चली गई। वो तो चली गई, पर मैं यहाँ सामान ले आई थी अपना कपड़ा सारा, तो उसी दिन से मैं यहाँ रहने लगी। फिर वहाँ वाला रूम ख़ाली कर दिया और यहीं शिफ़्ट हो गई। फिर मैं यहाँ पर एक साल रही। एक साल में मैंने यहाँ आशी का सारा काम बिना पैसे का किया। फिर सोसाइटी में कुछ ऐसा हुआ, और मुझे यहाँ से जाना पड़ा। मैंने फिर से रूम लिया 3000 में। फिर उस रूम का किराया आशी जैन देने लगे 3000। फिर ऐसे ही मेरी आशी के यहाँ 3000 सैलरी हो गई। फिर मैं ऐसे रहने लगी। पर मेरा सारा सामान आशी के घर पर ही है और मैं बस अपने रूम पर सोने चली जाती हूँ। और सुबह में यहीं आ जाती हूँ और यहीं से काम पर चली जाती हूँ। ऐसे भी मेरा जो जॉब था, वो पूरे दिन का था 8 बजे तक—8 से 8 मैं काम करती थी, 8 बजे आती यहाँ पर, खाना बनाती और फिर चली जाती 9 या 9:30 तक। अब ऐसे ही चल रहा है। जब तक आशी जैन की शादी नहीं होगी, तब तक ऐसे ही रहेगा। फिर जैसा होगा, वैसे कर लेंगे। अभी मैं आशी जैन के पास ही रहती हूँ। और फिर मेरी सैलरी आशी के घर 7500 हो गई, क्योंकि जो बच्चा था, वो बड़ा हो गया और स्कूल जाने लगा, तो मुझे टाइम मिल गया। और मैं उनका खाना से लेकर सारा घर का काम करने लगी। और आशी जैन का दो बार प्रमोशन हुआ, तो अब उनको पैसे देने में दिक्कत भी नहीं थी। मुझे ख़ुद बोले, “मोना, अब तुम सारा काम कर लो और जो पैसा बनता है ले लो और कर लो।” मैं बोली, “ठीक है।” तो अब मैं सारा काम करती हूँ और 7500 मिलने लगा। अब ऐसे ही सब ठीक चलता गया। आशी का भी सब ठीक है, अच्छी पोज़िशन पर है, और मैं भी काम कर रही हूँ। पर अब आशी जैन को शादी करनी है, वो बहुत लड़कियाँ देखते रहते हैं, पर अभी तक कोई पसंद नहीं आया है।

Saturday, January 4, 2025

मोना की कहानी (अध्याय 3)

Index of Journals

फिर मैं किसी लड़के से बात करने लगी तो वो लड़का मेरे पीछे पड़ गया और मुझसे शादी की बात रख दी। मैंने मना कर दिया। मैंने कहा, "मैं तो तुमसे बस बात शेयर करती हूँ, बात करती हूँ बस, और तुम्हारे लिए मेरे मन में कुछ नहीं है। नहीं, ये नहीं हो सकता। मैं शादीशुदा हूँ, ओके।" पर वो नहीं माना।

वो मेरी बात को नहीं समझा और मेरे घर तक आ गया। उसने मेरी भाभी से भी बात की, पर मैं उसे पसंद नहीं करती थी। मुझे उसमें कोई इंटरेस्ट नहीं था। क्योंकि मैं शादी से बहुत टूट चुकी थी। मेरे पास और कुछ बचा ही नहीं था, सिर्फ धोखा मिला। मेरी शादी इतनी गंदी जगह कराई थी, जब कि थोड़ा-थोड़ा सबको शक हो गया था कि लड़का दिमाग से कमजोर है। जानबूझ कर कर दी गई कि "क्या होगा, कर देते हैं। पैसे नहीं हैं कि कहीं और मोना को भेज देंगे। छोड़ो, कर दो ये सब।"

मैं सुनती थी, पर मैं बेबस थी। कुछ समझ भी नहीं था और क्या करती। ऐसे में मेरी शादी हो गई थी, तो अब मैं और कोई प्रॉब्लम नहीं लाना चाहती थी, इसीलिए दूर रहती थी। लेकिन अकेले रहने से बहुत दिक्कत थी। सबकी नजर मेरे ऊपर ही रहती। काश, ये मेरी गर्लफ्रेंड होती।

आजकल तो जमाना ही ऐसा है कि शादीशुदा से मतलब ही नहीं। बस लड़कियां हो। ऐसे में अकेले रहना बहुत मुश्किल है। पर भगवान जिसके साथ हों, सब आसान है। भगवान साथ न हों, तो सब मुश्किल। पर मुझे अपने भगवान जी पर पूरा भरोसा है। जब भी कुछ भी चाहिए, मैं उनसे बोल देती हूँ। और बोलकर मेहनत करने लगती हूँ। क्योंकि भगवान भी कहते हैं, "तुम मेहनत करो तो मैं तुम्हारे साथ हूँ।" अब वो तो पैसे लेकर नीचे नहीं आ सकते, आपका साथ ही दे सकते हैं।

फिर मैं उस लड़के की बात से डर गई। और मैं वहां से सारा सामान छोड़कर बच्चों के साथ अपने मायके चली गई। क्योंकि राखी थी। राखी भी हो जाएगी और किसी को शक भी नहीं होगी कि मोना क्यों आई है। फिर कुछ दिन वहां रुकी और वहीं पर नौकरी करने की सोची। मैंने अपनी भाभी को बताया, "भाभी, मैं यहीं रह जाऊँ। यहीं पर नौकरी कर लूँगी।"

भाभी थोड़ी अच्छी हैं और थोड़ी मुझे समझती भी हैं। इसलिए मैं उनसे सारा बात बता देती हूँ। जब भाभी ने हाँ बोला, मैं थोड़ी खुश हो गई और नौकरी ढूँढना शुरू किया। मेरा भाई राजस्थान, बीकानेर में था। वहां कोई नौकरी मिलना भी मुश्किल था। क्योंकि वहां पर कंपनी आस-पास कम थी और सैलरी भी कम थी। तो कैसे करूँ, क्या करूँ, समझ नहीं आ रहा था।

वहां पेपर आता था। मैं रोज पेपर पढ़ती थी और पेपर में ही नौकरी देखती थी। देखते-देखते मुझे एक दुकान पर काम मिला, जो जूनागढ़ में थी। मैंने तुरंत कॉल की और गई। जूनागढ़ घूमने की जगह है। वहां पर विदेशी भी बहुत आते थे घूमने। वहां दिन-रात एक दुकान खुली रहती, जिसमें पानी, कोल्डड्रिंक, ब्रेड, पेस्ट्री और भी खाने-पीने की चीजें मिलती थीं, जो खूब चलती थीं। उसी में मैंने काम किया। सुबह 7 से 6 बजे तक मैं वहां जाती।

फिर से मैं काम करने लगी और बच्चों को वहां एडमिशन करा दिया। फिर 10 महीने जैसे ही हुए, मेरे ससुराल से कॉल आने लगा कि मैं सब संभालूँगा। देहरी में बच्चों को पढ़ाऊँगा। "प्लीज, मोना को यहाँ भेज दीजिए।" मेरा भाई तैयार नहीं हुआ। फिर बहुत ज्यादा रिक्वेस्ट करने लगे। "नहीं, मैं करूंगा।"

फिर मेरा देवर कॉल करने लगा। उसने मेरे भाई से बात की। मेरा देवर नौकरी करता था आर्मी में। उसका घर देहरी में बन रहा था। तो वो मुझे ले गया और अपना घर दिखाया। और बोला, "जैसे ही बन जाएगा, आप यहाँ रह लेना और बच्चों को पढ़ाना मॉडल स्कूल में।"

मेरा भाई पहले तो मना करता रहा, फिर हाँ बोल दिया। और मुझे वहां छोड़ दिया। देहरी में। वो मेरा देवर बोला, "जब तक घर बन रहा है, तब तक आप बहन के घर रह लो।" बहन के घर तो कोई रहता नहीं था। सिर्फ एक बहन ही रहती थी और उसकी बेटी भी थी। उस टाइम पर उसको 4 महीने बाद कानपुर जाना था। फिर वहां मैं अपने दोनों बच्चों के साथ रही। बहन के पास रहने लगी।

सारा खर्च मेरा बहन का भी और उसकी बेटी का और हम तीनों माँ-बेटी का। अब 5 लोग रहने का खर्च मैं उठाई। बात ये हुई कि मेरे घर से सिर्फ चावल आता और स्कूल की फीस तक। बाकी खर्च मेरे मायके का। तो चलो ठीक है। पर मेरे मायके का खर्च। बस मेरे ससुराल वालों को पता था कि उसका भाई देगा। पर ऐसा नहीं था। अपना खर्च तो मैं ही उठाया करती थी।

फिर जैसे-तैसे मैं दिन बिता ली, मैनेज किया। और 4-5 महीने बीत गए। और मेरी बेटी की स्कूल फीस मेरे ससुराल वालों ने रोक दी। और बोले, "मेरी औकात नहीं है।" अब मैं क्या करूँ? ससुराल में बोले, "घर आ जाओ। गाँव में भी तो बच्चे पढ़ रहे हैं। तुम क्या स्पेशल हो? तुम भी गाँव में पढ़ाओ।" ये बात हो गई।

अब मैं परेशान थी। मेरे पास लगभग 1 लाख रुपये थे। वो भी दीदी के घर के खर्च में खत्म होने वाले थे। क्योंकि मैं तो बैठ गई थी। कोई नौकरी नहीं थी मेरे पास। अब मैं क्या करूँ? मेरी बेटी की जिंदगी की बात है। शिक्षा की बात है। मुझे तो कैसे भी पढ़ाना था। फिर मुझे आया गुस्सा और मैं चली गई थाने में। वहाँ पर मैंने सारा बात बताया कि ये सब बात है। मुझे हिसाब चाहिए, मुझे मेरे हिस्से की जमीन चाहिए। मैं खेती करूंगी और बच्चों को पढ़ाऊंगी। बहुत ज़्यादा हुआ, क्या बताऊं, क्या-क्या हुआ होगा। फिर किसी तरह मुझे 2 बीघा जमीन मिली और उसी 2 बीघा जमीन पर मुझे अलग कर दिया गया। और बाकी मेरे लिए जो चावल आता था, सब बंद कर दिया गया।

जब कि जून का महीना था। अब जून से मेरे ऊपर सारा खर्च डाल दिया गया। अब क्या करूं? पैसा भी नहीं दिया। क्या खाऊं, क्या स्कूल में दूं और जो खर्च है, सब कैसे करूं? जून-जुलाई जैसे-तैसे बिता और अगस्त में मैंने खेती कराई। खेती में पैसा मेरे भैया ने दिया ₹6000 और मेरी दीदी पिंकी दीदी ने ₹4000। कुल ₹10000 की जरूरत थी। मैंने मांगा ही था क्योंकि मैं ज़्यादा कर्ज नहीं ले सकती। अपना काम बस हो जाए।

मेरे भैया और दीदी दोनों पैसा नहीं मांगते, फिर भी मैंने इतना ही मांगा। जिंदगी में पहली बार मैंने पैसा मांगा। मुझे मिल गया। फिर मेरी दीदी, जिन्होंने पैसा दिया था, वो फोन पर बोली, "मोना, खेती मत करना। तुम्हें खेती का कुछ भी नहीं पता।" मैंने कहा, "नहीं, तो भी करूंगी।" और मैं गांव जाकर खेती कराई। 2 महीने मैं गांव में रही बच्चों के साथ। मेरे बच्चे भी बहुत मेहनत किए।

गांव से देहरी स्कूल के लिए गए। स्कूल सुबह 8 बजे थी और घर से 6 बजे ही निकल जाते थे ताकि 8 बजे से पहले स्कूल पहुंच जाएं। फिर ऐसे ही चला। कुछ महीने बाद खेती हो गई। मेरा बंटवारा भी हो गया। बंटवारे में बस 2 बोरा गेहूं मिला था, बाकी कुछ नहीं। बोले कि "अब कुछ है नहीं, बस यही है मेरे पास।" और गांव वाले भी तो ससुराल के साथ दे रहे थे।

क्या कर सकती थी मैं? अपना जमा-पूंजी से जैसे-तैसे रोटी का जुगाड़ कर लेते। फिर मैं बहन के घर आई। मेरी जो दूसरी बहन है, वो कोई काम की नहीं है। वो थोड़ी अलग है, उसमें थोड़ा भी दया नहीं है। वो मुझे बहुत टॉर्चर करती थी कि "तुम फ्री में मेरे घर में रह रही हो। कहीं और होती तो किराया लगता।" रोज मुझे ये बात का टॉर्चर था।

मतलब, ये मानो, मैं कैसे जिंदगी जी रही थी। बस मुझे भगवान पर भरोसा था कि सब ठीक होगा। फिर मेरी खेती अच्छी हुई। अच्छा मतलब बहुत अच्छा। फिर मैंने बच्चों का लास्ट पेपर दिलाकर गांव चली गई। और गांव से वापस नहीं आई। वहीं से अपनी बेटी को स्कूल कराने लगी। तब मेरे बच्चे एक दूसरी क्लास में और एक तीसरी क्लास में थे। अब चौथी और तीसरी में गए।

मेरी दीदी रोज भगाती कि "जाओ, हम ठेका नहीं लिए।" पर मैं सुनकर रह लेती। क्योंकि ससुराल में मेरा नाम खराब हो जाएगा अगर अलग रूम तुरंत ले लूं तो। इसलिए मैं सुनकर जैसे-तैसे साल लगा ली। फिर मैं थोड़ा-थोड़ा टाइम निकालकर गांव से ही रूम खोजने लगी। क्योंकि बच्चे ज्यादा परेशान हो रहे थे। कभी-कभी तो मेरे बच्चे रात में घर पहुंचते और मैं रोने लगती। भगवान से प्रार्थना करती। ऐसे हाल थे मेरे।

जब रूम मिल गया, तो मैंने फिर से रूम लिया। 2 रूम सेपरेट। भगवान की देरी से, रूम बहुत अच्छी जगह पर और अच्छा भी। किराया बस ₹2000। फिर मैंने अपने भैया को कॉल की, "भैया, मुझे ₹2000 हर महीने दे दो। बस थोड़ा दिन ही दे दो, पर दे दो।" सबके कहने से भैया मेरा ₹2000 देना शुरू किया हर महीने।

जैसे-जैसे दिन बीता, थोड़ा-सा खेती से आता और हर महीने किराया मेरा भैया देता। फिर मेरा किराया बढ़ गया। 7 महीने बाद ही ₹2200 हो गया। अब क्या? मेरे भैया को बताया, पर भैया तो ₹2000 ही दे सकते थे। वो भी मुश्किल था। भैया तो नहीं, मेरी माँ मुझे बहुत सुनाती थी। हर महीने सुना देती थी।

फिर मुझे बहुत बुरा लगा और मैंने मना कर दिया। बस मना हो गया। पैसा आना बंद हो गया। फिर मैंने खुद जॉब खोजना शुरू किया कि कोई काम मिल जाएगा। कपड़ों की दुकान हो या कहीं भी हो, मिल जाएगा। और मैं जॉब कर लेती हूँ। खोजते-खोजते बहुत महीने बाद मुझे जॉब मिल गया। एक टिफिन सेंटर में।

मैं वहाँ सुबह 4 बजे जाती और 7:30 तक आ जाती। धीरे-धीरे समय बीता। उसके बाद मैं अच्छे से रही। खेती भी कराने लगी और जॉब भी हो गई। तो अब दिक्कत नहीं थी। सब ठीक रहा। ऐसा जॉब मिला था कि खाना भी देता था मेरे बच्चों के लिए। सुबह जो मैं टिफिन बनाती, वही टिफिन मेरे दोनों बच्चों को देता।

क्योंकि मैंने बोला था कि मेरे बच्चे स्कूल जाते हैं, उनकी टिफिन देना पड़ेगा। तो वो मान गया था। क्योंकि मेरा खाना सबको पसंद था। इसलिए जहाँ जॉब करती थी, वो आने-जाने का किराया भी रोज दिया करता था। मुझे ₹20। वो पैसा भी मैं बचा लेती। और पैदल जाया करती। 7 किलोमीटर रोज पैदल जाती और आती।

ऐसे ही दिन साल निकल गए। फिर वहाँ पैसे कम पड़ने लगे और बच्चों का खर्च ज्यादा हो गया। फिर मैंने सोचा कि अब तो मेरे बच्चे बड़े हो गए। इनको छोड़कर बाहर जॉब करने जाऊं। और मैं रोज अपने बच्चों से बोलती, "मैं जाऊं क्या जॉब करने? तुम दोनों बहनें रह लोगी?"

क्योंकि अभी भी वो छोटे ही थे। और क्लास 6 में एक थी और एक क्लास 7 में। और दूसरी बात, दोनों लड़की-लड़की अकेले नहीं रह सकतीं। बहुत दिक्कत है। क्योंकि मैं भी एक लड़की हूँ। ऐसे हालात हैं हमारे कि समझ भी नहीं आता कि कहाँ जा सकते हैं और कहाँ नहीं। बहुत मुश्किल है जीना।

मोना की कहानी (अध्याय 2)

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तो मैं अपनी छोटी बहन का डॉक्यूमेंट लेने गई, फिर लेकर आई और अपनी बेटी को अपनी भाभी के पास छोड़ आई। अब मेरी दोनों बेटियाँ, एक नानी के पास और एक मेरी भाभी के पास रहने लगीं। जॉब का अभी साल लगने वाला ही था कि मेरे मायके से कॉल आने लगा कि अपना बच्चा ले जाओ। अब जैसे ही ये सुना, मेरा हाल खराब हो गया कि जॉब के साथ बच्चे कैसे संभाल पाऊँगी। क्या बताऊँ तब क्या हुआ। मैं बहुत परेशान थी। फिर मैंने ये सोचा कि बात नहीं है, मेरी दोनों बेटियाँ बड़ी हो जाएँगी। जो कि दोनों छोटी ही थीं, एक 6 साल की और एक 3 साल की। फिर भी थोड़ा उम्मीद थी कि बड़ी होंगी, अब खेल सकती हैं और रह सकती हैं। तो मैं अपनी दोनों बेटियों को हरियाणा ले आई। फिर अपनी बेटियों को घर में रहना सिखाया और ये बताया कि बेटा, घर से कभी भी बाहर नहीं निकलना, जब तक माँ न आए। तब तक कमरे से बाहर नहीं आना। मेरी दोनों बेटियाँ मेरी बात बहुत मानती हैं और समझदार भी हैं। फिर थोड़े महीने बाद मैंने अपनी दोनों बच्चियों का एडमिशन पास के स्कूल में करा दिया और फिर ट्यूशन लगवा दी। दोनों को सब कुछ सेट कर दिया। सब ठीक चल रहा था। फिर मेरी बेटी का स्कूल से कंप्लेंट आने लगा कि बच्चे स्कूल क्यों नहीं आ रहे हैं, क्या प्रॉब्लम है। और मुझे स्कूल वालों ने बुलाया। मैं बोली, "मैं तो रोज़ तैयार करके भेजती हूँ। ये तो रोज़ आते हैं।" अब एक और प्रॉब्लम आ गई। अब मैं क्या करूँ? स्कूल तो है 8 बजे और मेरी कंपनी है 6 बजे। अब कैसे भेजूँ इनको स्कूल? अब तो समझ में ही नहीं आ रहा था कि कैसे बच्चों को स्कूल भेजने का कोई उपाय निकालूँ। बच्चे बर्बाद हो जाएँगे। एक लेडी के लिए बहुत बड़ा चैलेंज होता है कि बच्चा देखे या जॉब। जॉब देखूँ तो बच्चा प्रॉब्लम में और बच्चा देखूँ तो जॉब। और दोनों ही ज़रूरी हैं क्योंकि कहाँ से खिलाती, कहाँ से क्या करती? फिर मैंने एक और रास्ता निकाला। बच्चों को तैयार करके प्रिंसिपल मैडम के पास छोड़ आने का सोचा। और दोनों को रोज़ वहीं छोड़ आती और कंपनी से गेट पास लेकर कभी-कभी देखने आ जाती। तो फिर सब ठीक हो गया और बच्चे स्कूल टाइम से जाने लगे। फिर उनकी आदत हो गई और वो रोज़ टाइम से जाते और आते। फिर ऐसे ही चला। सब कुछ अच्छा, सब अपने काम टाइम से होते रहे। बच्चों का भी और मेरा भी। अब एक और प्रॉब्लम आई कि मेरी कंपनी में आग लग गई और मेरी जॉब चली गई। कुछ महीने तो कंपनी ने पैसे दिए, फिर कहा कि दूसरे जगह काम करो। उसके बाद मुझे कोई अच्छी जॉब नहीं मिली और मैं कुछ महीने कोई काम नहीं कर पाई। उसके बाद मुझे किसी ने बताया कि गार्ड का जॉब पता चला। मैं गई, मेरा इंटरव्यू हुआ, पर मेरी उम्र ही नहीं थी तो नहीं हो पाया। तो वहीं पर एक लड़का था जो फील्ड ऑफिसर था। वो मेरे पीछे पड़ गया और मैं भी उसके जाल में फंस गई। वो लालच देता कि जॉब की टेंशन मत लो, मैं हूँ। कहीं न कहीं लगवा दूँगा। मैं सोची चलो लगवा ही देगा। और मुझसे बात करता ऐसे बहाने। और मैं बात करती कि चलो जब तक जॉब नहीं लगी है, बात कर लेते हैं। क्या दिक्कत है बात करने में? ऐसे दिन बीत गए और वो जॉब बहुत दिन तक नहीं लगवा पाया। फिर मैंने उससे फोन पर बात करना बंद कर दिया कि छोड़ो, ये ठीक नहीं। बात तो कोई और थी। वो मुझे अकेले में बोलता कि वहाँ जाओ तो हो जाएगा। पर मैं अकेले नहीं जाती, किसी न किसी के साथ जाती। ऐसे ही दिन बीत गए। फिर एक दिन फोन पर बोला कि अकेले आया करो ऑफिस में, तभी जॉब लगेगी। तुमको जॉब करनी है तो तुम ही आओ। बस और किसी को क्यों लाती हो? भरोसा नहीं है क्या? मैं बोली, "नहीं, मैं अकेले नहीं आ सकती। तुम ठीक नहीं लगते मुझे।" तो वो हंसने लगा। बोला, "ऐसी कोई बात नहीं। मैं तुमको पसंद करता हूँ बस। और जबरदस्ती नहीं करूँगा कुछ भी। तुम बहुत अच्छी हो। और लड़कियों जैसी नहीं हो।" ये सब बात हुई। बात ये है कि मेरी उम्र कम थी और मेरे पास ज़िम्मेदारी ज़्यादा। तो मुझे लेकर वो बहुत पसंद करते थे। पर मेरा ध्यान बस काम पर था क्योंकि मुझे कुछ करने का जुनून था। दोस्त और बॉयफ्रेंड नहीं चाहिए। काम किया और घर पर रहे। ज़्यादा काम किया, ओवरटाइम किया। ये सब। ये नहीं कि घूमने चले गए, छुट्टी कर ली। ये सब नहीं। सारी लड़कियाँ छुट्टी करतीं पर मैंने कभी नहीं। मैं फूल अटेंडेंस बनाने में रहती। इसलिए मेरी आदत घूमने में नहीं थी। संडे को भी मैं ओवरटाइम करती। ऐसे ही मेरा टाइम निकल गया। और मुझे ये नहीं पता कि मैं लड़का हूँ या लड़की। मैं कभी तैयार भी नहीं होती। बस सिंपल रहती। लड़की जैसे लड़का रहता, वैसे ही। क्योंकि माहौल खराब है बहुत। फिर भी कोई न कोई टकरा जाता। पर मैं ध्यान नहीं देती। मुझे ये सब से ज़्यादा से ज़्यादा दूर रहना था क्योंकि मैं तो अपना फोकस काम में देती। घूमने ये दोस्ती में नहीं थी। कभी-कभी मैं भी यही सोचती। मेरी सारी फ्रेंड का दोस्त है। सब लोग बोलते, "दोस्त भी ज़रूरी हैं। काम ही काम सब नहीं है लाइफ में। टाइम स्पेंड करने के लिए या और कुछ के लिए दोस्त होना चाहिए।" पर मैं नहीं मानती थी। मैं बोलती, "नहीं, दोस्त तो सब दोस्त ही हैं। दुश्मन तो कोई नहीं है।" तो मेरी दोस्त मुझे बोलती, "जाओ ठीक है, तुम जैसे रहो। कोई बात नहीं।" पर मैंने दोस्त कभी नहीं बनाए। ऐसे मेरी जिंदगी है। क्या ही बताऊँ और क्या छुपाऊँ। ये समझो लाइफ बहुत व्यस्त है।

Thursday, January 2, 2025

मोना की कहानी (अध्याय 1)

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मैं मोना सिंह।  
मैं एक अच्छे घर से बिलॉन्ग करती हूँ। मैं 6 बहनें और एक भाई हूँ। मेरे पापा गवर्नमेंट जॉब में थे, तो घर में कम बजट था और परिवार बड़ा था। 6 बहनें और एक भाई। मैं दूसरी सबसे छोटी हूँ।  

मेरे पापा ने ज्यादा किसी को नहीं पढ़ाया। सभी को बस 10वीं क्लास तक ही पढ़ाया। मतलब इतना पढ़ाया कि हम लोग अनपढ़ न रहें। एक चीज़ अच्छी थी कि पढ़ाई इंग्लिश मीडियम से हुई। पर मैं सिर्फ 8वीं क्लास तक ही पढ़ पाई क्योंकि मेरी शादी कर दी गई। घर में कोई समस्या थी या फिर एक लड़का मिल गया फ्री में, और मेरी शादी कर दी गई।  

साल 2003 में मेरी शादी हुई। शादी इतनी गंदी जगह हुई कि मैं उसे शब्दों में बयां नहीं कर सकती। अगर किसी को जानना हो, तो मुझे बोलकर पूछना पड़ेगा क्योंकि मैं लिख नहीं सकती।  

शादी के बाद मेरे ससुराल से एक नियम आया मेरे मायके में, कि शादी के एक साल तक बहू की विदाई नहीं कर सकते। लेकिन मेरा भाई आया और बोला, "ये कैसा नियम है? हम लोग ये नहीं होने देंगे।" मेरा भाई दो-तीन बार मेरी विदाई कराने आया। लेकिन मेरे ससुराल वालों ने एक प्लान बना लिया। हमारे गाँव में कोई भी काम पंडित से पूछकर किया जाता है। शुरू में, शादी के बाद यही नियम बताया गया।  

मेरे ससुर ने पंडित जी को पैसे देकर प्लान बना लिया था कि वो बाद में मेरे भाई को बहाना बना देंगे ताकि मैं एक साल तक मायके न जा पाऊँ। फिर वही हुआ। मैं एक साल तक मायके नहीं गई। इस एक साल में मेरी बेटी हुई, जिसका नाम माही रखा।  

शादी के तीन साल बाद मैं मायके गई। फिर मेरे देवर की शादी हुई। मेरी देवरानी 15 दिन बाद ही मायके चली गई। तब मैंने गाँववालों से पूछा कि ये क्या है? मेरे समय तो ऐसा नहीं था। जबकि ये नियम सिर्फ 2 साल पहले ही बताया गया था। आज ऐसा कैसे? मैंने गाँववालों से इसलिए पूछा ताकि सच्चाई पता चल सके। तब पता चला कि ये सब पंडित के बहाने थे।  

जब मेरी विदाई 3 साल बाद हुई, तो मैंने सारा दुख-दर्द अपने परिवार में माँ को बताया। मेरी माँ बहुत स्ट्रॉन्ग हैं। मेरी एक बहन हैं, जो 3 नंबर की हैं। वो सबका दर्द समझ जाती हैं और एक भाई की तरह सपोर्ट करती हैं। उन्होंने ये सारी बातें सुनकर बहुत गुस्सा किया और वहाँ से सब छोड़ने की बात कर दी। बोलीं, "ऐसे परिवार में नहीं चाहिए मेरी बहन को। ऐसे तो अच्छा है कि यही रह लेगी पूरी जिंदगी। वो तो नरक है। इतना जुर्म हुआ है, इस पर आगे पता नहीं क्या होगा।"  

मेरे मायके और ससुराल में बहुत ज्यादा विवाद हुआ। अब मैं कुछ नहीं समझ पा रही थी कि मैं कहाँ जाऊँ, क्या करूँ, क्योंकि मुझमें कोई समझदारी नहीं थी।  
मेरे मन में बस एक ही बात थी कि कोई बात नहीं। मेरे पति बाहर नौकरी कर लेंगे तो सब ठीक हो जाएगा।  

फिर मैंने अपने भाई से बात की, "भाई, आप इन्हें जॉब दिलवा दो। ये जॉब कर लेंगे तो सब ठीक हो जाएगा। शायद काम करेंगे तो मैं भी बाहर चली जाऊँगी। तो बस सब ठीक हो जाएगा।"  
मेरा भाई अच्छा जॉब करता था। मेरी शादी के बाद उसकी नौकरी अच्छी थी। वो मेरे पति को अपने अंडर काम पर लगा सकता था। शादी के 5 साल बाद मेरे पति को जॉब लगवा दी।  
पर मुझे लगा कि मेरी शादी तो एक नौकरी वाले लड़के से ही हुई है। पर ये सब झूठ निकला।  

अब नौकरी तो लग गई, पर मेरे पति नौकरी ही न कर पाए। हर 15 दिन में घर भागकर आ जाया करते।  
अब मेरा परिवार बहुत परेशान हुआ कि अब क्या करें। फिर भी मेरा भाई हार नहीं माना। उनका अटेंडेंस बनाता गया। करीब 1 साल मेरा भाई इसी तरह से नौकरी को पकड़े रहा।  
पर फिर मेरे भाई ने कहा, "मोना, ये नौकरी नहीं कर पाएंगे। एक काम करो। तुम यहीं रहो। हो सकता है ये काम कर लें और बार-बार घर न आएँ।"  
तो मेरा भाई मेरे लिए फ्लैट लाया और मुझे बुला लिया। तब मेरी दो बेटियाँ हो चुकी थीं।  
मैं एक बेटी को नानी के पास छोड़ आई और एक को लेकर फ्लैट में आ गई।  

फिर जैसे ही 2 महीने हुए, वो नौकरी पर नहीं जाने लगे। मेरी किस्मत क्या थी, पता नहीं। पर मेरे भाई का प्रमोशन हो गया और वो चांगन से कहीं और चला गया।  
अब मैं अकेली थी और मेरे पति की नौकरी खतरे में। फिर भी मेरे भाई ने वहाँ भी बुलाया। अपने दोस्त से बात कर इंटरव्यू दिलवाया।  
उसके साथ जो मेरे भाई का दोस्त था, उसका भी कराया और मेरे पति का भी कराया। उसका तो हो गया पर मेरे पति का नहीं हुआ।  
हो जाता क्योंकि सब कुछ बताया हुआ था। पर एक जगह फँस गए कि सैलरी कम बता दी और….

"उस पर पेपर जो था, उस पर ज़्यादा था, तो उसमें ही वो पकड़े गए। उनमें इतना भी नहीं था कि देख लें कि कितनी सैलरी बोलनी है, तो जॉब नहीं लगी और वापस आ गए।  
अब आने के बाद मेरा भाई क्या कर सकता था? उसने समय दिया। फिर बाद में बुलाया, पर जिसको काम ही नहीं करना, उससे कोई काम नहीं करा सकता। ये तो सच है।  
ऐसे-ऐसे दिन बीत गए और मैं बहुत परेशान थी, क्योंकि मैं खुश ही नहीं थी।  
तो क्या करूं, क्या नहीं करूं, समझ से बाहर था। कोई रास्ता नहीं, सारे बंद हो गए। जीने का कोई मतलब भी न दिखाई दे रहा था। क्या करूं, क्या नहीं करूं, कुछ समझ नहीं आ रहा था।  

फिर एक आदमी से मेरी मुलाकात हुई। उससे मैंने एक टीवी खरीदी थी अपनी बेटी के लिए। तो मैंने सोचा, अब क्या करूं? अब तो उसी घर में जाना होगा और जैसे रखें, रहना होगा। क्या ही करूं? मायके में तो इतना नहीं रह सकती। माँ-पापा को परेशान नहीं कर सकती। माँ-बाप तो माँ-बाप होते हैं, वो तो मुझे रख लेते, पर ये मेरा फैसला था कि मैं मायके नहीं रह सकती।  
और मैंने अपने ससुराल जाकर रहने का सोच लिया।  

पर भगवान जी को कुछ और ही पसंद था। जब टीवी देने गए अंकल को, तो उन अंकल ने ही मुझे सारी बात समझाई। टीवी देने के दौरान ही उन्होंने मुझे समझाया और जॉब करने की सलाह दी।  
और मैंने जॉब करना शुरू कर दिया। तब मेरी छोटी बेटी बस 1 साल की थी। अब सवाल आया कि जॉब कैसे करूं, बच्चा छोटा है। तो मैंने अपनी बेटी को कुछ समय के लिए अपने मायके में छोड़ दिया और जॉब शुरू की।  
जब जॉब शुरू की, तो मेरे पास कोई डॉक्यूमेंट्स नहीं थे। अब क्या करूं? तो फिर उन अंकल ने एक और रास्ता बताया कि तुम किसी भी बहन के डॉक्यूमेंट्स मंगा लो और जॉब शुरू करो।

Friday, December 27, 2024

What is Google’s counter-offer to the US govt’s plans to break up the company?

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Here’s what Google thinks it should do in order to restore competition to the online search engine market.

Months after it was found guilty of having an illegal monopoly in the online search engine market by a US district court, Google has proposed remedies to fix its own anti-competitive behaviour.

The proposed fixes are mainly directed at Google’s search distribution contracts with Android phone makers, browser companies, and wireless carriers, as per a blog post by Lee-Anne Mulholland, Google’s VP of Regulatory Affairs.

While it still plans to appeal Judge Amit Mehta’s landmark antitrust ruling declaring, “Google is a monopolist, and it has acted as one to maintain its monopoly,” the company said that the “legal process requires that the parties outline what remedies would best respond to the Court’s decision.”

This comes following the US Department of Justice’s own list of demands to correct Google’s illegal antitrust practices, starting by making the company divest Chrome.

What changes is Google proposing?

As part of its proposal, smartphone manufacturers would not have to pre-load Chrome as a requisite for Google Play or other Google apps to be pre-loaded on Android devices. “This will give our partners additional flexibility and our rivals like Microsoft more chances to bid for placement,” the company said.

Coming to Apple and Mozilla, Google said that it would allow for such browser developer companies to have “multiple default agreements across different platforms (e.g., a different default search engine for iPhones and iPads) and browsing modes.”

They would also have the option to change the default search provider in their respective browsers at least every 12 months, it added.

In its ruling, the court found that Google pays Apple more in revenue share ($20 billion approx.) than what it pays all other partners combined, thus keeping the iPhone-maker on the sidelines of the search market.

“The prospect of losing tens of billions in guaranteed revenue from Google—which presently come at little to no cost to Apple—disincentivises Apple from launching its own search engine when it otherwise has built the capacity to do so,” the order read.

While the proposed remedy could free up Apple to compete against Google in the search engine market, it appears that the iPhone-maker is not willing to do so. Instead, Apple wants to participate in upcoming court hearings to defend the revenue-sharing agreement it has with Google, Reuters reported.

In response to the DOJ’s concerns that Google could ink deals ensuring that its AI model, Gemini, is pre-loaded on Android phones, the search giant has proposed, “Android partners can license Google Play, Search, and/or Chrome without also licensing Google’s Gemini Assistant mobile application.”

Notably, Google has suggested that these restrictions should last for three years, which is much shorter than the ten-year term proposed by the DOJ.

What does the DOJ want?

The US Department of Justice has urged the court to direct Google to sell off its flagship web browser Chrome.

It also suggested that the tech giant should be barred “from owning or acquiring any investment or interest in any search or search text ad rival, search distributor, or rival query-based AI product or ads technology.”

Furthermore, the DOJ proposed that Google should be banned from entering into exclusive agreements with content publishers (such as news websites), and from acquiring its competitors or potential competitors in the general search domain without prior approval.

The legal filing also dangled the possibility of Google divesting from Android to prevent it from using the mobile operating system to box out rival search providers.

Other remedies proposed by the DOJ include banning the company from preferencing its search engine on other Google-owned platforms such as YouTube and Gemini, giving rivals access to valuable search data such as ranking signals, US-originated query data, and its search index at a “marginal cost, and on an ongoing basis”, and letting users opt out of its AI Overviews feature.

What is next in the antitrust battle?

If the court accepts the DOJ’s proposal, Google could face a major restructuring that would drastically impact its revenue model. On the other hand, if the court accepts the remedies proposed by Google, the company’s core business would be intact, but it would mark the end of its long-standing, multibillion-dollar deal with Apple.

A two-week trial over the remedies proposed by both parties is scheduled to begin from April 2025.
Tags: Investment,Management,

Thursday, December 26, 2024

OpenAI’s new model o3 is a big leap, stuns tech world

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OpenAI's new o3 model demonstrates a significant leap in logical reasoning and code-generation capabilities, offering unprecedented productivity for coders. Industry leaders advocate for developers to adapt and leverage AI tools to enhance their skills, noting the irreplaceable value of human intuition, judgment, and innovation in software development.

OpenAI’s new o3 model arrived with little fanfare but quickly set off a surge of conversation in tech circles. Early demonstrations suggest a leap in logical reasoning and code-generation capabilities, far beyond earlier AI tools. If these benchmark results prove accurate, coders may be on the verge of a profound transformation in how they work—an evolution that, while exciting, also raises questions about job displacement and the future of software development.

Many in the industry see o3 as a productivity boon. “These tools drastically improve productivity by significantly reducing the time taken for routine tasks,” says Krishna Prasad Vyakaranam, CTO at Motivity Labs, a part of Magellanic Cloud. “Developing a feature that used to take days can now be completed in minutes. Coders should view this evolution as inevitable and akin to previous technological transitions, such as moving from books to Google and now from Google to advanced AI models.”

Among those intrigued by o3’s performance is Lalitha Duru, VP of CleverTap Labs, who calls it “definitely the biggest leap AI has taken since its inception,” citing its success on benchmarks like ARC-AGI. Though Duru highlights o3’s resource intensity—at times making it costly—she notes that technology often becomes more affordable over time and sees o3 as “a wake-up call signalling the demand for a better class of developers.”

Others emphasise that coders need not fear automation but should adapt, honing the traits that AI cannot replicate. “The capabilities dem onstrated by o3 are undoubtedly impressive and should be seen as a double-edged sword for coders and software developers,” says Atul Rai, co-founder & CEO of Staqu Technologies. He points out that o3’s strongest advantage lies in tackling repetitive tasks. “Rather than fearing obsolescence, coders should embrace this as an opportunity to evolve, leveraging AI tools to augment their capabilities.”

A similar theme emerges in discussions about the human qualities AI lacks. “AI models like o3 still can not fully replicate creative intuition, moral reasoning, and the understanding of ambiguous requirements,” says Manish Jha, chief information officer at Addverb. “Coders and software developers should welcome and adopt this change with enthusiasm and curiosity, but also remain aware of how such models may shape traditional roles.”

For Lakshminarasimman Raghavan, GVP of technology at Publicis Sapient, the continuing importance of human oversight cannot be overstated. “While coders will have powerful assistance from such models, a lot depends on the human-in-the-loop—the programmer—to ensure the code they write is part of software that actually creates value.”

Nearly all these industry experts recommend that developers confront o3’s rise by strengthening the abilities no AI can imitate. “AI can only extrapolate from existing data and patterns,” says Vyakaranam. “It cannot replicate the uniquely human capacity to think about social impact or sense what might be controversial.”
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Big tech's bloodbath - 150,000 jobs cut as market shifts shake industry

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The tech industry in 2024 is witnessing a significant wave of layoffs, with nearly 150,000 workers losing their jobs across major companies like Tesla, Intel, Microsoft, and Cisco. As the market adapts to changing economic conditions, tech giants are streamlining their operations to cut costs, restructure their businesses, and align with evolving market demands, reported The Times of India.

>> Intel cuts 15,000 jobs amid toughest year in history
    
In a bid to save $10 billion by 2025, Intel announced a massive reduction in its workforce, cutting 15,000 jobs, or over 15 per cent of its total headcount. Facing substantial losses, the chipmaking giant is slashing R&D, marketing, and capital expenditures in a significant effort to improve its financial standing amid difficult market conditions. The restructuring aims to focus on efficiency, eliminating non-essential operations, and optimising spending.
    
>> Tesla’s double blow: 20,000 jobs cut
    
Tesla, led by CEO Elon Musk, has been executing aggressive layoffs, reducing its workforce by over 20,000 employees across multiple departments. Musk's directive to "be absolutely hard core" about job cuts led to layoffs in both junior and senior executive ranks, with the Supercharging team among the hardest hit. Bloomberg reports that Tesla's workforce reduction could reach as high as 20 per cent in total.
    
>> Cisco slashes 10,000 jobs as demand shifts
    
Networking giant Cisco laid off approximately 10,000 employees in two rounds of layoffs this year. The company made a 5 per cent workforce reduction in February, followed by another 7 per cent reduction in the second half of the year. As CEO Chuck Robbins put it, Cisco is adapting to a "more normalised demand environment," while pivoting to focus on high-growth sectors like AI and cybersecurity.
    
>> SAP restructures, affects 8,000 employees
    
SAP, a leader in enterprise software, is undergoing a major restructuring process affecting 8,000 employees, roughly 7 per cent of its workforce. The company has opted for job changes or buyouts as part of an ongoing effort to streamline operations and position itself for future growth.
    
>> Uber cuts 6,700 jobs as pandemic strain continues
    
Uber, still reeling from the effects of the Covid-19 pandemic and reduced demand in the ridesharing sector, has laid off 6,700 employees. The company has also restructured, closing offices and winding down certain business units, including self-driving labs, as part of a long-term reevaluation.
    
>> Dell faces second round of cuts, eliminates 6,000 jobs
    
Dell Technologies has enacted its second major round of layoffs in just two years, eliminating 6,000 jobs due to sluggish demand in the personal computer market. The company is also cutting additional positions in 2024 to address cost concerns amid a challenging economic environment.
    
>> Bell cuts 4,800 jobs in shock virtual terminations
    
Canadian telecommunications company Bell has laid off approximately 4,800 employees in an unexpected restructuring. The terminations were carried out via 10-minute video calls, a controversial move that has drawn criticism. Bell justifies the cuts as necessary for simplifying its organizational structure and transforming its business model.
    
>> Xerox slashes 3,000 jobs in restructuring
    
Xerox is cutting 15 per cent of its workforce, affecting around 3,000 employees as part of a larger restructuring effort. The company is focusing on simplifying its core print business and investing in IT and digital services to adapt to changing market needs.
    
>> Microsoft cuts 2,500 jobs in gaming division
    
Microsoft has restructured its gaming division, laying off 2,500 employees across Activision Blizzard, Xbox, and ZeniMax. These cuts are part of an effort to establish a more sustainable cost structure, with significant leadership changes, including the departure of key executives.
    
>> PayPal lays off 2,500 employees amid profit pressure
    
PayPal has announced a 9 per cent reduction in its workforce, laying off 2,500 employees due to rising competition and profit pressure. CEO Alex Chriss stated that the job cuts are part of a "right-sizing" strategy to position the company for future profitability.
    
>> Byju’s cuts 2,500 jobs amid financial struggles
    
Indian ed-tech giant Byju's has laid off 2,500 employees, about 5 per cent of its workforce, as part of ongoing restructuring efforts. With mounting debt, Byju’s is trying to streamline its operations and adjust to a changing market.

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Saturday, December 21, 2024

CEO Sundar Pichai to employees: Google layoffs saw 10% reduction in managers, directors, and vice presidents (Dec 2024)

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Google has reportedly cut its number of top management roles by 10% in its yearslong push for efficiency. According to a report in Business Insider, CEO Sundar Pichai told employees the same in an all-hands meeting earlier this week.

Pichai reportedly said that Google had made changes over the past couple of years with the aim to "simplify the company and make it more efficient." The report quotes two employees who claim to have heard the remarks.
Quoting sources, the report added that Pichai further said that the efficiency push included a 10% reduction in managers, directors, and vice presidents. Google spokesperson told the publication that while some of those roles were changed to non-managerial positions others were eliminated entirely.

Google's 'biggest-ever' job cuts

In September 2022, Pichai said he wanted Google to be 20% more efficient, and the following January the company had a historic round of layoffs that saw 12,000 roles eliminated. In January 2023, Alphabet, parent company of Google, announced that it’s cutting around 6% of its global workforce. In an open letter published by Google and Alphabet CEO Sundar Pichai said that the company had “hired for a different economic reality” than what it’s up against today. “We’ve undertaken a rigorous review across product areas and functions to ensure that our people and roles are aligned with our highest priorities as a company,” Pichai wrote, adding that the layoffs will impact units across Alphabet, not just Google, and that all regions and product areas will be affected.

Layoff warning in January 2024

In January 2024, Google CEO Sundar Pichai sent a memo to its staff warning more layoffs are expected this year. Pichai’s memo said the company will have to make “tough choices” to meet its ambitious goal. Though Google layoffs in 2024 have not been as deep as in 2023, several divisions have seen employees go.

"Googleyness" gets new meaning

At this week's all-hands, Google CEO Pichai also said that the word "Googleyness" had become too broad. Pichai clarified what the word means for the company. The word is now said to be about being "Mission First" and being "Bold and Responsible."
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Sunday, December 15, 2024

Japan plans to give three weekly offs to everybody from next year to grow younger

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Synopsis

The Tokyo Metropolitan Government is set to implement a four-day workweek for its employees starting in April 2025, aiming to address Japan's declining fertility rates and promote work-life balance. Governor Yuriko Koike unveiled the plan, which also includes new policies to support working parents. The initiative is part of a broader effort to help alleviate pressures on families and reduce the gender gap in the workforce. Starting in April 2025, the Tokyo Metropolitan Government will offer its employees a new work schedule—three days off each week. This move is part of a broader strategy to address Japan’s declining birth rates by improving work-life balance, particularly for working parents. Alongside the four-day workweek, a separate policy will allow parents of elementary school children in grades one to three to reduce their working hours in exchange for a proportional salary cut. “We will review work styles … with flexibility, ensuring no one has to give up their career due to life events such as childbirth or childcare,” said Tokyo Governor Yuriko Koike, in a policy address on Wednesday. “Now is the time for Tokyo to take the initiative to protect and enhance the lives, livelihoods, and economy of our people during these challenging times for the nation.”

Japan’s Fertility Crisis and the Need for Change

Japan is currently facing a fertility crisis, with its birth rate dropping to a record low of 1.2 children per woman, far below the replacement rate of 2.1. In 2023, the nation saw only 727,277 births, with Tokyo's birth rate sinking even further to 0.99. This demographic decline has caused significant concern, as it is expected to lead to a population reduction from 128 million in 2008 to an estimated 86.7 million by 2060. In response, the government has introduced various policies, including incentivising childbearing and encouraging men to take paternity leave. However, experts argue that Japan's demanding work culture is a major factor driving down birth rates. Long hours and high workplace pressure often force workers, especially women, to choose between their careers and family life. This issue is compounded by Japan's substantial gender gap in labour force participation—55% of women participate in the workforce compared to 72% of men, according to World Bank data.

The Work-Life Balance Struggle

Japan's rigorous work culture, known for long hours and “karoshi” (death by overwork), has long been a barrier to balancing career and family. Women, in particular, are under pressure to choose between career advancement and motherhood, with many finding the cost of raising children, coupled with their unequal share of domestic duties, too high a price. The International Monetary Fund (IMF) reports that women in Japan perform five times more unpaid domestic work than men, and many women who had fewer children than they wanted cited the increased burden of housework as a deterrent. A four-day workweek could provide a much-needed solution, offering families more time together and reducing the pressure on working parents. As Koike stated, the goal is to ensure that no one has to give up their career due to childbirth or childcare, with the added benefit of helping improve fertility rates.

Global Success of Shortened Workweeks

The idea of a four-day workweek has gained traction globally, with companies in Western nations beginning to experiment with compressed work schedules as a way to enhance employee well-being and attract talent seeking a better work-life balance. A 2022 global study by 4 Day Week Global involved trials in six countries, where over 90% of participating employees reported improvements in physical and mental health, reduced stress, and better work-life integration. The trials showed that men also took on a greater share of household responsibilities, spending 22% more time on childcare and 23% more on housework. Peter Miscovich, a global future of work expert at JLL, highlighted the benefits of shorter workweeks, saying, “The upside from all of that has been less stress, less burnout, better rest, better sleep, less cost to the employee, higher levels of focus and concentration during the working hours, and in some cases, greater commitment to the organisation as a result.” These positive results suggest that Japan’s move toward a four-day workweek could alleviate some of the burdens of working parents and potentially boost the country’s low fertility rate.

Cultural Shifts and Challenges Ahead

While the four-day workweek has proven successful in other parts of the world, its adoption in Japan presents significant cultural challenges. In Japanese corporate culture, long hours are often equated with loyalty to the company, and shifting away from this norm will require a deep cultural transformation. Despite the potential benefits of a shorter workweek, it may take time for Japanese companies to fully embrace the idea. Tokyo’s initiative comes at a critical time for the nation, which has seen its population steadily decline since 2008. In addition to its fertility policies, Japan is pushing for measures to create a more family-friendly society. Earlier this year, Singapore introduced new regulations requiring companies to consider employee requests for flexible working arrangements, including four-day workweeks. As Tokyo moves forward with its plans, the success of these policies could set a precedent for other cities in Japan and beyond, encouraging broader adoption of family-friendly work policies and offering new solutions to global work-life balance challenges. Ref